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Tuesday, March 23, 2010

परीक्षाओं से डरे नहीं, हसकर सामना करे


आज कल बच्चो की परीक्षाओं के कारण बच्चो के साथ साथ ही उनके माता पिता पर भी एक दबाब बना हुआ है..परीक्षाओं मे अच्छा प्रदर्शन करने का दबाब .मगर कोई भी कार्य प्रेशर मे अच्छी प्रकार से नहीं किया जा सकता है. अत: परीक्षाओं का प्रेशर कम करने के लिए माता पिता को बच्चों पर अत्यधिक पढ़ाई का प्रेशर नहीं बनाना चाहिए, माता पिता बच्चे का सहयोग करे अच्छी तरह परीक्षा की तेयारी करने में. उसे शुरू से ही ये समझाये की वो अपनी क्षमता के अनुसार ही पढाई का प्लान बनाये और परीक्षाओं की तेयारी करे। माता पिता को बच्चे के आस पास का माहौल हल्का फुल्का तनाव रहित बनाये रखे . बच्चे के मन को अच्छे विचारों से सुसज्जित करें.


बच्चो को भी टाइम टेबल बनाकर पढना चाहिए, एक साथ पूरा न पढ़ थोडा थोडा पढ़े इससे दिमाग पर अतरिक्त बोझ नहीं पड़ेगा .जब तक पढ़ाई में मन लगे तब तक पढ़े ,जब बोर होने लगे तब किताबे छोड़कर अपनी पसंद का कोई भी कार्य करे, ताकि आप फिर से तारो ताजा हो जाये एकाग्रचित होकर पढ़ने के लिए.

बच्चों को चाहिए की पढ़ाई और परीक्षा के प्रति सकारात्मक सोच अपनाये. पढ़ाई को बोझा नहीं समझे बल्कि एन्जॉय करे.

अगर बच्चे बिना रटे समझकर पढ़ाई करे, तो वह परीक्षा में बिना भूले उत्तर लिख सकेगा.और अगर छात्र परीक्षा के पहले से ही लिख कर सवालों को वक्त के अनुसार हल करे, तो उसको परीक्षा में बिना डरे प्रश्न पत्र हल करने मे आसानी होगी.

माँ भी बच्चे का खास ख्याल रखे परीक्षा में ,वो बच्चे को तला-भुना खाना खाना न खिलाये बल्कि हल्का फुल्का पोष्टिक कहना खिलाये ताकि बच्चा खुद को हल्का और तारो ताज़ा महसूस करे।उसकी तबियत भी न खराब हो.


जब बच्चा सोने जाते तब दिन भर जो भी याद किया हो उसे मन मे दुहराए, इससे उसकी तेयारी अच्छी हो जायेगी और वो याद किया हुआ कुछ भी भूलेगा नहीं।नींद निश्चिंत होकर पूरी ले ताकि सुबह उठने पर खुद को तारो ताज़ा पाए.


इसी प्रकार थोड़े से सहयोग और प्रयास से बच्चा जिंदगी का हर छोटा बड़ा एक्जाम आसानी से पार करता जायेगा, बस उसे जरुरत है माता पिता के थोड़े से प्यार व साथ की.उसमे पढ़ाई को लेकर पैदा की गयी सकारात्मक सोच उए सही राह दिखाएगी वह बिना किसी दबाव में अपने समस्त एक्जाम अच्छी तरह देगा.

परीक्षा डरने का नहीं खुद का सही सही आंकलन करने का माध्यम है और कई परीक्षाये पास करके ही जिंदगी का सफर अच्छी तरह कटेगा.

Monday, March 15, 2010

नव विक्रम संवत २०६७ की हार्दिक शुभकामनाए.


हिंदी नव वर्ष विक्रम संवत 2067

चैत्रे मासि जगद ब्रह्मा ससर्ज प्रथमे अहनि, शुक्ल पक्षे समग्रेतु तदा सूर्योदये सति! ब्रह्म पुराण के इस श्लोक के अनुसार चैत्र मास के प्रथम दिन प्रथम सूर्योदय पर ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना की थी ! इसी दिन से विक्रम संवत की शुरुआत होती है.

हिंदी नव वर्ष, विक्रम संवत अथवा हिंदी नया साल ; उत्तरी भारत में यह दिन १६ मार्च २०१० को मनाया जायेगा ।


आज जहाँ बच्चा बच्चा इंग्लिश नव वर्ष को बड़े हर्ष उल्हास से मनाता है , वही अपने नव वर्ष या नव संवत की शुरुआत के बारे में उसको कुछ भी जनकारी नहीं होती है. ये हमारी ही कमी मानी जायेगी जो हमारे यहाँ के बच्चे अपनी संस्कृति को भूलते जा रहे है और पश्चिमी सभ्यता का अनुसरण बड़े लगन और प्यार से कर रहे है।


हिंदू केलेंडर के अनुसार हिंदी नव वर्ष या विक्रम संवत की शुरुआत चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को होती है. यह शुरुआत मार्च और अप्रैल में मध्य के लगभग होती है. चैत्र मास में अमावस्या के अगले दिन नए विक्रम संवत की शुरुआत होती है !

इस वक्त मौसम भी बहुत सुहाना होता है जैसे वो भी हमारे नव वर्ष का स्वागत करने को आतुर हो गया हो। बड़ा ही मनोरम दृश्य हर ओर देखने को मिलता है,आम के पेड अपनी टहनियों पर आये बौर से हर्षाये से लगते है, बौर की भीनी भीनी सुगंध और बौर से लदे पेड का सौंदर्य वातावरण को एक सुखद रूप प्रदान करता है .पंछियों के जमघट से बागों और बगीचों में बहार खिल उठती है.

हर तरफ बहुत ही सुंदर वातावरण का आगमन हो चुका होता है . इस प्रकार नव संवत अपने साथ नए कोपल, नए पत्ते,सुंदर फूल, नए नए फल लेकर आता है. धरा भी नया श्रंगार करके नव जीवन का संचार करती हुई हरे भरे पेडो और फलो का स्वागत करती है और सभी के मन को प्रसन्नता से भर देती है.

अत : अपने नव संवत जिसका स्वागत प्रकृति भी बड़ी आतुरता से सम्मान के साथ करती है , हम सबको भी अपने उस हिंदी नव वर्ष का स्वागत ह्रदय से करना चाहिए क्यों की ये तो सबको अपने आप ही खुशियों से भरे रहने की सीख देता है.

हमारे यहाँ आज भी कोई भी शुभ कार्य या धार्मिक अनुष्ठान हिंदी विक्रम संवत के अनुसार ही तिथि और काल की गणना करके ही किया जाता है. इस प्रकार इस विक्रम संवत का हमारे यहाँ विशेष महत्व है.

सभी पाठकों को नव विक्रम संवत की हार्दिक शुभकामनाए.

सखी शुभकामनाओ के साथ

Nav Varsh Samvat or Hindi New Year Nav Varsh Samvat is celebrate as North India New Year . In 2010 Nav Varsh Samvat is on 16th March

Sunday, March 7, 2010

महिला दिवस कितना सार्थक



अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस

इतिहास

यह दिवस ८ मार्च को मनाया जाता है। अमेरिका में सोशलिस्ट पार्टी के आवाहन पर , यह दिवस सबसे पहले २८ फरवरी १९०९ में मनाया गया। इसके बाद यह फरवरी के आखरी इतवार के दिन मनाया जाने लगा। १९१० में सोशलिस्ट इंटरनेशनल के कोपेनहेगन के सम्मेलन में इसे अन्तरराष्ट्रीय दर्जा दिया गया। उस समय इसका प्रमुख ध्येय महिलाओं को वोट देने के अधिकार दिलवाना था क्योंकि, उस समय अधिकर देशों में महिला को वोट देने का अधिकार नहीं था।

१९१७ में रुस की महिलाओं ने, महिला दिवस पर रोटी और कपड़े के लिये हड़ताल पर जाने का फैसला किया। यह हड़ताल भी ऐतिहासिक थी। ज़ार ने सत्ता छोड़ी, अन्तरिम सरकार ने महिलाओं को वोट देने के अधिकार दिये। उस समय रुस में जुलियन कैलेंडर चलता था और बाकी दुनिया में ग्रेगेरियन कैलेंडर। इन दोनो की तारीखों में कुछ अन्तर है। जुलियन कैलेंडर के मुताबिक १९१७ की फरवरी का आखरी इतवार २३ फरवरी को था जब की ग्रेगेरियन कैलैंडर के अनुसार उस दिन ८ मार्च थी। इस समय पूरी दुनिया में (यहां तक रूस में भी) ग्रेगेरियन कैलैंडर चलता है। इसी लिये ८ मार्च, महिला दिवस के रूप में मनाया जाने लगा।

महिला दिवस कितना सार्थक

आज महिला दिवस के अवसर में आप सभी से आज कि महिला के बारे में कुछ कहना चाहूंगी .

इक्कीसवीं सदी की स्त्री ने स्वयं की शक्ति को पहचान लिया है। उसने काफी हद तक अपने अधिकारों के लिए लड़ना सीख लिया है। आज स्त्रियों ने सिद्ध किया है कि वे एक-दूसरे की दुश्मन नहीं, सहयोगी भी हैं। स्त्री सशक्त है व उसकी शक्ति की अभिव्यक्ति इस प्रकार देखने को मिल रही है।

आज कि महिला हर जगह अपना स्थान बना चुकी है ..मगर फिर भी उसको आज अपने अस्तित्व के लिए अपने ही लोगो के बीच में जूझना पड़ता है. आज महिलाए अपने ही घर में अपनी पहचान बनाने के लिए संघर्ष करने को मजबूर है .जबकि वो घर के बाहर जाकर हर प्रकार से अपनी पहचान बनाने में सक्षम है.

आज महिला जहांज उड़ाने के साथ साथ पुरुष के साथ कंधे से कंधा मिला कर घर को व्यवस्थित करने में घर को चलाने में अपना सम्पूर्ण सहयोग दे रही है .परन्तु आज समाज का जो रूप सामने आया है, उसमें ऐसा महसूस होता है जैसे कन्या का स्थान कही है ही नहीं. अधिकांश घरों में लड़किया जन्म ले ही नहीं पाती है. क्यों कि आज के समाज में किसी को भी बेटी कि चाहत ही नहीं है.बेटियाँ बोझ समझी जाती है माता पिता पर.अब ऐसे में महिला दिवस मनाना कितना सार्थक है ? आज का दिन ऐसे तो विशेष तौर पर महिलाओं के लिए समर्पित किया गया है, लेकिन क्या सिर्फ एक दिन महिला दिवस के रूप में मना कर हम महिलाओ के हक कि बात सम्पूर्णता के साथ कर सकते है ?

महिलाए जिनको हमारे समाज का आधा हिस्सा माना जाता है ..एक परिवार में प्रमुख हिस्सा माना जाता है उनके लिए एक दिन अलग से मनाया जाना कहा तक उचित या अनुचित है ?? ये सोचने की बात है .

जबकि आमतौर पर घर में ही महिलाओ को सम्मान नहीं दिया जाता है. लड़कियों को अपने अस्तित्व के लिए घर में ही संघर्ष करना पड़ता है सबसे पहले.

आज एक बेटी का जन्म होते ही परिवार में मायूसी के बादल मंडराने लगते है, बेटी को जन्म देना तो दूर कि बात है गर्भ में ही मार दिया जाता है उस परिवेश में महिला दिवस मानना क्या एक दिखावा भर नहीं है. जिसको आप पैदा ही नहीं होने देते हो या उचित स्थान नहीं देते हो समाज में, तो उसके लिए ये एक दिवस मनाना क्या मान्यता रखेगा भला.

अगर सही मायने में महिला दिवस मनाना ही चाहते है हम सब तो सबसे पहले बेटियों को माँ के गर्भ में ही न मार कर इस धरती पर जनम लेने देना होगा.और उनको समाज में शिक्षित और सुसंस्कृत महिला के रूप में प्रस्तुत करना होगा..आज देश में स्त्रियों कि जनसंख्या काफी कम रह गयी है इस बात का ध्यान रखते हुए समाज में स्त्री और पुरुष के अनुपात को सही रखना होगा, ताकि सही मायने में इस महिला दिवस को सार्थक बनाया जा सके. और इन सभी कार्यों को करने के लिए एक महिला को ही सबसे पहले पहल करनी होगी अपनी ही बेटी को गर्भ में मारने के लिए अगर एक महिला तेयार न हो तो ये पुरुष कुछ नही कर सकते है.एक माँ को ही अपनी बेटी को जन्म देकर उसके हक के लिए सबसे लड़ने कि हिम्मत खुद में पैदा करनी होगी . तभी हमारे समाज में महिलाओं को उचित स्थान मिल सकेगा. इसीप्रकार एक सम्पूर्ण समाज कि स्थापना हो पायेगी.