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Monday, September 27, 2010

एक सच



आज इन्टरनेट करने के लिए जब बैठी तो नेट पर कुछ लोगों के ब्लोग्स पढ़ने लगी. मैंने देखा लोग साहित्य में भी गुट बाजी करते है. हर ब्लोग पर कुछ ही चेहरे टिप्पणियाँ करते नजर आ रहे थे. जैसे किसी और को पढ़ने का या कुछ कहने का उनके पास वक्त ही नहीं है.
मैंने बहुत से ऐसे लोगो को पढ़ा है जो बहुत अच्छा लिखते है, मगर उनको कोई अपना कीमती वक्त देकर टिप्पिणियाँ नहीं करता. क्यों की न तो वो गुट बाजी में यकीन रखते है और न ही वो किसी को कहते है कि आप आकार हमारे पोस्ट पर टिप्पणियाँ करो.
क्या आज बस लोग वाह वाही लूटने के लिए कुछ लिखते है या फिर लिखने के लिए लिखते है? ये प्रश्न मेरे मन में अक्सर ही  घूमता रहता है.

आज कल लोग बस नाम के लिए जान पहचान वालों को पढते है या फिर अपनी साहित्य रूचि के लिए कुछ ऐसा पढाना चाहते है जो वाकई में ऐसा लगे कि हां कुछ लिखा है नया सा. या फिर ओरिजनली लिखा गया है , कहीं से चुराया हुआ कोई भाव नहीं है...पर अब जिसे देखो वो गुलजार होना चाहता है या जावेद अख्तर होना चाहता है ..पर ये दो ऐसे नाम है जिन्होंने बरसो मशक्कत करके अपना नाम इस बुलंदी पर पहुँचाया है. तब क्या इन सब लोगो को, जो अपना नाम लेखकों कि श्रेणी में रखते है. कुछ ऐसा नहीं लिखना चाहिए या पढना चाहिए जो वाकई में मन को सुकून देने वाला हो, जिसे पढकर लगे कि हां लिखने वाले ने क्या लिख दिया है.
पर आज बस यश कि चाहत है सबको चाहे लिखने के नाम पर वो कुछ भी बकवास करे . पर एक सच्चे लेखक को या साहित्य प्रेमी को तो इंतज़ार होता है एक ऐसी रचना को जो आपके मन और आत्मा को अंदर तक भीगा सके. और सच्चाई के साथ फिर अपनी राय हर पढाने वाला दे, तभी सबका लेखन सफल है.

Monday, September 13, 2010

गणेश उत्सव कि सभी को हार्दिक शुभकामनाएं.

ओम गणेशाय नम:
आज कल गणेश उत्सव बड़े धूमधाम से मनाया जा रहा है.गणेश उत्सव महाराष्ट्र में विशेष तौर पर मनाया जाता है.पर यह हिंदू धर्म को मानने वाले लोग हर जगह पर मनाते है. गणेश चतुर्थी को विनायक चतुर्थी भी कहा जाता है. गणेश जी का स्थान हिंदू समाज में किसी भी शुभकार्य हेतु प्रथम पूज्य है. गणेश जी का शरीर हाथी और आदमी दोनों को मिला कर माना जाता है.गणेश जी कि संपूर्ण संरचना हैमें बहुत कुछ बताती है या कहे सीख देती है. आइये हम क्या क्या सीख सकते है किस भाग से यह जाने.
बड़ा सिर :- बड़ा सोचना सिखाता है.
कान :- गणेश जी के बड़े-बड़े कान हमें जयादा सुनने कि सीख देते है.
छोटी आंखे:- गणेश जी छोटी आँखे अपने लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करना सिखाती है.
गणेश जी के हाथ का फरसा या कुल्हाड़ी :- सभी प्रकार एक मोह बंधन को काटने कि हमें सीख देती है.
दूसरे हाथ का फूल :- लक्ष्य के नजदीक रखने कि प्रेरणा देता है .
छोटा मुंह :- कम बोलने कि प्रेरणा देता है .
एक दन्त :- अच्छाई को नजदीक और बुराई को दूर करने कि सीख देता है .
दुआयें :- अपनी शक्ति से मार्ग के संकटो को दूर रखने का महत्व बताती है.
सूड :- उच्च झमता एवं ग्रहण करने कि झमता
बड़ा पेट :- आराम से कोई भी अच्छी या बुरी चीज़ जिंदगी में पचाने कि सीख देता है .
लड्डू या मोदक :- साधना का फल
चूहा :- अपनी चाहतों पर अंकुश लगाने कि सीख देताहै..ये सिखाता है कि चाहतो को अपने अधीन रखना चाहिए ना कि उनके अधीन रहना चाहिए इंसान को.
प्रसाद :- पूरा संसार आपके द्वार


इस प्रकार गणेश जी का हर अंग हमें बहुत कुछ सिखाता है..और बेहतर जिंदगी जीने के काबिल बनाता है.


इस साल गणेश उत्सव ११ सितम्बर से २२ सितम्बर तक मनाया जायेगा..
गणेश जी आप सभी के सब दुखो को दूर करे.
गणेश उत्सव कि सभी को हार्दिक शुभकामनाएं.



Monday, September 6, 2010

हर बच्ची अमूल्य है


चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी

रात को अपने पड़ोस में रहने वाले एक परिवार में मैं गयी, उनके यहाँ उनके बेटे के परिवार में नए सदस्य का आगमन हुआ था..अर्थात बेटी का जन्म हुआ था .
मैं एक पास ही रहने वाली भाभी जी के साथ उनके घर गयी. वहाँ पहुँच कर कुछ देर हम बाहर ड्राइंग रूम में बैठ गए...आंटी जी ने वोही हमें बिठा दिया पर मैंने मन में तो नन्ही सी कोमल सी गुडिया को देखने कि पड़ी थी. इसलिए चाहती थी जल्दी से जल्दी वाहन से हमें अंदर उसके पास तक ले जाया जाये.मगर सब हमसे बात करने लगे..मुझसे पूछा  जाने लगा मम्मी क्यों नहीं आयी, पापा क्यों नहीं आये , मैंने जल्दी से उत्तर दे दिया इस उम्मीद के साथ कि अब अंदर हम जायेंगे. मगर फिर वोही सिलसिला जारी हो गया भाभी जी के साथ ..उनसे भी पूछा जाने लगा भैया के बारे में कि वो क्यों नही आये?
मुझे मन ही मन ये फिक्र हो रही थी कि कब में उस नन्ही सी कलि को देख सकुंगी ..या आज देखने को मिलेगा भी या नहीं?
वो इसलिए क्यों कि उनके यहाँ उस बच्चे कि छठी थी ..मतलब उसको जन्म  लिए हुए ६ दिन पूरे हुए थे. अब ख्यालो का सिलसिला दिल-ओ जहाँ में चल रहा  था तभी मेरे पास जिनके घर हम गए थे, उनकी बेटी का आगमन हुआ, पहले मैंने बढ़ायी डी बुआ बनने  की  और हमने  फिर  तपाक से कह ही डाला..कि बच्ची कहा है??
उससे कहा कि देखनी है???
हमें कहा और क्या...
उससे कहा अंदर है आओ
मैं पीछे हो ली, मेरे साथ वो भाभी जी और उनकी दो बेटियाँ  भी अंदर चल दी.
जब हम अंदर पहुंचे तो छोटी सी बच्ची सोयी हुई थी..माँ के साथ..एक दम नाजुक नाजुक ..गोरी-गोरी  प्यारी सी.
बहुत खुशी हुई उसको दकेह कर और तसल्ली भी मिली..उसको कुछ गिफ्ट्स दिए मैंने और बस उसको देखने बैठ गयी.
सारे लोग कितना खुश थे मैंने देखा ..वो भैया जिनकी वो बेटी थी उनकी पत्नी अंकल आंटी और बाकि सारे उनके परिजन बहुत खुश थे.

कुछ देर उस उस नन्ही सी गुडिया के साथ बैठके फिर हुआ कि चलो खाना खा लो..पर मेरा मन भी कहा सुन रहा  था , मुझे तो बस वही  उसके साथ रहने का मन हो रहा था.
पर सब उठके जाने लगे तो हम भी सबके साथ हो लिए..रात के १० बज ही गए थे तो मजबूरी भी थी .घर भी आना था.
फिर खाना खाया और सबसे कुछ देर मिली बातें हुई. उसके बाद घर आयी.
बस एक संतोष था कि लड़किया हमेशा अनचाही नहीं होती..उनके जन्म पर भी घर वालो को खुशी हासिल होती है.और यही खुशी मेरे लिए बहुत बड़ी थी.
बस सभी होने वाले बच्चे कि देखभाल करे प्यार से न कि बेटे या बेटी में फर्क  करे. तभी तो स्वस्थ समाज का निर्माण हो सकता है.
हर बच्ची अमूल्य है ये बात हम सबको समझनी ही होगी. कल का भविष्य है ये बेटियाँ .इनकी आज देखभाल करना आप सभी का फ़र्ज़ है .