आज इन्टरनेट करने के लिए जब बैठी तो नेट पर कुछ लोगों के ब्लोग्स पढ़ने लगी. मैंने देखा लोग साहित्य में भी गुट बाजी करते है. हर ब्लोग पर कुछ ही चेहरे टिप्पणियाँ करते नजर आ रहे थे. जैसे किसी और को पढ़ने का या कुछ कहने का उनके पास वक्त ही नहीं है.
मैंने बहुत से ऐसे लोगो को पढ़ा है जो बहुत अच्छा लिखते है, मगर उनको कोई अपना कीमती वक्त देकर टिप्पिणियाँ नहीं करता. क्यों की न तो वो गुट बाजी में यकीन रखते है और न ही वो किसी को कहते है कि आप आकार हमारे पोस्ट पर टिप्पणियाँ करो.
क्या आज बस लोग वाह वाही लूटने के लिए कुछ लिखते है या फिर लिखने के लिए लिखते है? ये प्रश्न मेरे मन में अक्सर ही घूमता रहता है.
आज कल लोग बस नाम के लिए जान पहचान वालों को पढते है या फिर अपनी साहित्य रूचि के लिए कुछ ऐसा पढाना चाहते है जो वाकई में ऐसा लगे कि हां कुछ लिखा है नया सा. या फिर ओरिजनली लिखा गया है , कहीं से चुराया हुआ कोई भाव नहीं है...पर अब जिसे देखो वो गुलजार होना चाहता है या जावेद अख्तर होना चाहता है ..पर ये दो ऐसे नाम है जिन्होंने बरसो मशक्कत करके अपना नाम इस बुलंदी पर पहुँचाया है. तब क्या इन सब लोगो को, जो अपना नाम लेखकों कि श्रेणी में रखते है. कुछ ऐसा नहीं लिखना चाहिए या पढना चाहिए जो वाकई में मन को सुकून देने वाला हो, जिसे पढकर लगे कि हां लिखने वाले ने क्या लिख दिया है.
पर आज बस यश कि चाहत है सबको चाहे लिखने के नाम पर वो कुछ भी बकवास करे . पर एक सच्चे लेखक को या साहित्य प्रेमी को तो इंतज़ार होता है एक ऐसी रचना को जो आपके मन और आत्मा को अंदर तक भीगा सके. और सच्चाई के साथ फिर अपनी राय हर पढाने वाला दे, तभी सबका लेखन सफल है.