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Saturday, November 5, 2011

भावभीनी श्रधांजलि भूपेन हजारिका जी को

ओ गंगा बहती हो क्यों ............................

  • विस्तार है अपार, प्रजा दोनो पार, करे हाहाकार, निःशब्द सदा, ओ गंगा तुम, ओ गंगा तुम. .. ओ गंगा… बहती हो क्यूँ ..
    नैतिकता नष्ट हुई, मानवता भ्रष्ट हुई, निर्लज्ज भाव से बहती हो क्यूँ. . . .
    इतिहास की पुकार, करे हुंकार, ओ गंगा की धार, निर्बल जन को सबल संग्रामी, समग्रगामी. . बनाती नही हो क्यूँ. . . .
    विस्तार है अपार, प्रजा दोनो पार, करे हाहाकार, निःशब्द सदा, ओ गंगा तुम, ओ गंगा तुम. .. ओ गंगा… बहती हो क्यूँ . ..

    अनपढ़ जन अक्षरहीन अनगिन जन खाद्यविहीन निद्रवीन देख मौन हो क्यूँ ?
    व्यक्ति रहित व्यक्ति केन्द्रित सकल समाज व्यक्तित्व रहित निष्प्राण समाज को छोडती न क्यूँ ?
    रुतस्विनी क्यूँ न रही ? तुम निश्चय चितन नहीं प्राणों में प्रेरणा प्रेरती न क्यूँ ?
    उन्मद अवनी कुरुक्षेत्र बनी गंगे जननी नव भारत में भीष्म रूपी सूत समरजयी जनती नहीं हो क्यूँ ?


एक गम से छुटकारा मिला नहीं एक दूसरे दुःख ने आकर घेर लिया.
इसके पहले जो पोस्ट किया वो भी दुःख भरी खबर थी और अज भी फिर से में भुपने दा के ना रहने कि खबर के साथ दुखी मन से ये पोस्ट कर रही हूँ. बहुत दुःख हो रह है कुछ  दिन के अंतराल पर ही दो कालजयी आवाजो के मालिकों के ना रहने का .आवाजो के मध्यम से यूँ तो वो सदैव हमारे बीच जीवित है किन्तु दुःख इस बात का भी है कि उन आवाजो के अब कोई नयी रचना रचित होकर नहीं गूंजेगी.
भूपेन दा जहाँ भी हो भगवन उनकी आत्मा को शांति दें.
मुझे याद आ रहा है एक उनका अमर गीत.....

ना कहो कोई में अकेला हूँ ...में और मेरा साया दो है दोनों है

बस अभी इतना ही कह पा रही हूँ फिर आउंगी इन दोनो महान कलाकारों के बारे में कुछ बाते कहने .


आभार सखी