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Friday, July 6, 2012

मानसून और पहली बारिश कि दस्तक


६/७/१२ .....समय रात्रि के १०.५५
जैसे गर्मी से झुलसता मन एक हवा के झोंके का इंतज़ार करता है और हवा का एक झोंका ही आकार तपती गर्मी से रहत दे जाता है. वैसे ही आज कि बारिश ऐसे आई जैसे कई दिन से अपनी प्रेमिका के दीदार का इंतज़ार कर रहा कोई प्रेमी अपनी प्रेमिका के ना आने पे दुखी हो जाता है और थक कर घर चलने को होने लगता है , तभी उसे दूर से आती हुई प्रेमिका दिख जाती है और वो अपने सब दुःख भूल कर दौड पढता है आपको आलिंगन करने के लिए. बहुत दिन से सभी दुखी थे परेशां थे गर्मी से झुलसता हर इंसान बस आसमान कि ओर इस आशा में देखता था कि कब ये काले बदल पानी लेकर आये और इस प्यासी धारा को तृप्त कर जाए . पर इन्द्र देव भी जैसे जून के महीने में छुट्टी  पे थे. और जिस तरह दिल्ली और आसपास के इलाके में स्कूल कि छुट्टियाँ कर दी गयी थी, उसी प्रकार इन्द्र देव भी अपनी छुट्टियाँ आगे बढा कर आराम फरमाने लगे थे . फिर अचानक उनको जैसे अपना काम याद आया और थोडा सा आलस छोड़ कर उन्होंने सुबह सुबह जरा बारिश कर धारा पर गर्मी से कराहते लोगों को थोड़ी रहत दे दी और इस मानसून कि पहली बारिश ने अपनी दस्तक सुबह होते ही दे दी .....और लोग अब राहत कि सांस लेने ही लगे थे कि उनको लगा कि चलो अब इनको पूरा मजा ही दे दिया जाये. और फिर होना क्या था उन्होंने अपने सारे काले बादलों को आदेश दिया जाओ और देल्ली और आसपास का सारा  इलाका इतना भिगाओ कि लोग खुशी से झूम जाये . और काले बदरा   ने भी इन्द्र देव के आदेश को मन और शाम होते होते सबको खूब नहलाया और ठंडक का अहसास कराया. कुछ लोगो को “आज रपट जाए तो हमें न उठइयो “ जैसे अंदाज़ में नहाते हुए देखा तो कुछ लोगो को “रिम झिम गिरे सावन सुलग सुलग जाये मन” जैसे अंदाज़ मन ही मन नहाने को बैचैन देखा. कुल मिलकर एक सुखद शाम थी ये मानसून के पहले दिन के साथ. पेड, पत्तियां , घास ने जहा नहा धोकर अपने हरे रंग को और निखारा वोही पशु , पंक्षी अपने अपने डेरों की  तरफ लौटते हुए इन्द्र देव को मन ही मन धन्यवाद दे रहे थे कि उन्होंने उनकी जरा सी सुधि तो ली.
आप सभी को भी इस मानसून की बारिश का भरपूर आनंद मिले इसी दुआ के साथ अभी बस इतना ही .
 बरखा रानी के इस अनोखे अंदाज़ के साथ आप सभी को एक गीत गुनगुनाने के लिए कहे जा रही हूँ.....
“मेघा रे मेघा रे न तू परदेश जा रे 
आज तू प्रेम का सन्देश बरसा दे .”