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Friday, May 31, 2013

शायद

तुमने कह तो दिया बड़ी ख़ामोशी से कि मुझे अपनी जिंदगी में शामिल कर लो.
इसका अर्थ पता है क्या है ..अपनी जिंदगी में तुम्हारे हवाले कर दूँ. पर  क्या अपनी जिंदगी की  डोर तुम्हारे हाथो में देकर में सुकून के दो पल बिता सकूंगी  ?
ऐसे कैसे मैं आसानी से स्वीकार कर लूं तुहारा निर्णय ? पर फिर तुम्हारा अडिग होकर अपने  निर्णय से बार बार मुझे अवगत करना और कहना क्यों डरती हों तुम ? मैं हू न हर हाल  में तुम्हारे साथ . तुमको कभी कोई कष्ट  न हों इस बात  का ध्यान में सदैव रखूँगा .
नहीं मुझे डर लगता है ...ये प्यार व्यार कि बाते अपनी समझ से परे है ..बिना बात के अपने दिल को कष्ट दूँ मैं इतना बड़ा काम मैं नहीं कर पाऊँगी .फिर वोही मनुहार कि बात और धीरे धीरे तुम्हारे विश्वास ने मेरे अंदर अपना घर कर लिया.अब आज क्या हुआ ? कुछ समझ नही आया ...जितने भी नकारात्मक विचार थे सब मन में एक केक करके आ रहे थे और अगर नहीं कुछ आया तो वो था तुम्हारा कोई किसी भी माँध्यम से सन्देश .न फोन आया , न कोई फोन पे मेसेज और न हों यहाँ फेसबुक में कोई खबर. तुम खुद भी नहीं मिले किधर भी . जब हर और अँधेरा घिरा लगे और उम्मीद कि कोई किरण जब हमें नज़र नहीं आती  है तो मन और दिल में ठन जाती है ..मन कहता है ऐसा है दिल कहता नहीं ऐसा कुछ नहीं है . अब किस बात पे यकीन कैसे आये कुछ समझ नहीं आता . बस एक उम्मीद और एक आस अब है पास...कि शायद ...हां शायद ही तो वह शब्द है जो अक्सर हमें एक उम्मीद देके चला जाता है भले ही उस उम्मीद के सहारे हम फिर अपना पूरा जीवन गुजार दें .

समय ..११ .४३ रात्रि दिनोंक ..३१/५/१३