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Friday, April 11, 2014

मन के भाव

हम बात करते है ..निश्छलता की....उम्मीद ये करते है की ..सबका प्यार हमारे लिए निश्छल हो ...पर क्या खुद  किसी से निश्छल प्रेम करके देखा?
हम्बात करते है कुटिलता की ..दुहाई देते है अक्सर हम लोगो के मन में बसी कुटिलता की ..और कहते है की देखो कितना मक्कार है ...पर क्या हम अपने मन की कुटिलता को दूर कर सबके लिए अपना मन  निर्मल रखते है ?
और पता है हमारे अन्दर की सबसे बड़ी  कमी क्या है? ....हम जैसा खुद नहीं करते है बिलकुल वैसा खुद के लिए करने की दुसरो से उम्मीद लगाये बैठे रहते है ...क्या है ये?...१.२५ ऍम ..१२/४/१४