आज हिंदी दिवस है . क्या सिर्फ एक दिन धूम धाम से हिंदी दिवस मन लेने से हम अपनी मातृभाषा को सही स्थान या सम्मान दे देते है? क्या हमारी मातृभाषा आज हमारे ही दिलों में स्थान पाने को बेकरार नहीं है ?
हम सब आज अपनी इस भाषा के प्रति कितने ईमानदार है एक बार खुद से ये पूछे . क्या आप कहीं भी बेधडक हिंदी बोलते हो? नहीं आज अधिकांश लोगों को हिंदी में किसी से बात करना शर्मनाक लगता है. वो अधिकतर अन्ग्रेजी का दामन पकडे हुए चलते है. क्या हमारी मातृभाषा इतनी गयी गुजरी है की हम किसी के सामने इसका प्रयोग अपने मन से न कर सके??..ऐसे कितने ही सवाल है बहुत से लोगो के मन में पर उत्तर शायद ही कोई खोजने की कोशिश करता हो. सभी सरकारी संस्थाए १४ सितम्बर को हिंदी दिवस पर सेमिनार या कार्यशाला मन कर अपने अपने फ़र्ज़ की इतिश्री समझ लेती है. और फिर रह जाती है अपने ही देश में अपने अस्तित्व को तलाशती हमारी अपनी हिंदी .
हम सब आज अपनी इस भाषा के प्रति कितने ईमानदार है एक बार खुद से ये पूछे . क्या आप कहीं भी बेधडक हिंदी बोलते हो? नहीं आज अधिकांश लोगों को हिंदी में किसी से बात करना शर्मनाक लगता है. वो अधिकतर अन्ग्रेजी का दामन पकडे हुए चलते है. क्या हमारी मातृभाषा इतनी गयी गुजरी है की हम किसी के सामने इसका प्रयोग अपने मन से न कर सके??..ऐसे कितने ही सवाल है बहुत से लोगो के मन में पर उत्तर शायद ही कोई खोजने की कोशिश करता हो. सभी सरकारी संस्थाए १४ सितम्बर को हिंदी दिवस पर सेमिनार या कार्यशाला मन कर अपने अपने फ़र्ज़ की इतिश्री समझ लेती है. और फिर रह जाती है अपने ही देश में अपने अस्तित्व को तलाशती हमारी अपनी हिंदी .
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