हां हां सब जानते है तेरे बारे मैं कि तू कैसी है.
अच्छा क्या जानते है सब मेरे बारे में बताओ जरा ,में भी तो जानू जो सब जानते है?
रहने दे ......
क्या रहने दूँ ? मुझे बताओ न क्या जानते है सब .
ये कह कर आशा ने गौर से अपने पति का मुह देखा और उसकी तरफ से किसी उत्तर कि प्रतीक्षा करने लगी.
पर उसका पति दूसरी तरफ मुह करके बैठ गया .
तब आशा ने अपनी मालकिन नीमा से (जिनके घर में वो रहती थी ) कहा - दीदी मुझे ऐसे ही बोलता है ये .
नीमा ने तब बोला क्यों बोलते हो ऐसे तुम इसको?
तब उसका पति शांत रहा कुछ नहीं बोला .
ये उनकी अक्सर होने वाली लड़ाइयों में से एक दिन का दृश्य था .
आशा जो कि एक मुश्लिम लड़की थी 'आयशा' जिसने अपनी मर्ज़ी से शादी कि थी और वो भी एक हिंदू लड़के से.
सबकी मर्ज़ी के खिलाफ जाके, उसने घर से भागकर दूसरे शहर में जाकर शादी की थी ,ये सोच कर कि उसकी दुनिया प्यार से भरी रहेगी ,
अपने प्यार के लिए अपना धर्म नाम सब बदल लिया .
लेकिन हुआ क्या? वो बैठी सोच रही थी और अपने नसीब को कोस रही थी .
जिसके लिए घर वाले छोड़े वही इंसान उसके बारे में गलत बातें सोचता है .
वो बस और कुछ न कर सकी ..सिवाय आंसु बहाने के.
उसकी दुनिया अब थी दो बच्चे और पति . रोज काम पर जाना और घर का काम सुबह शाम . और पति , जब मर्ज़ी हुई काम किया, वरना घर में आराम किया.
और आशा फिर उसी पति कि हर ख्वाहिश पूरी करने के लिए जुट जाती अपने घर में कुछ खुशिया जुटाने कि खातिर .
1 comment:
हा सखी जी अक्सर ऐसा ही होता है की लड़ाई मे हम दूसरे को गलत साबित करने मे लगे रहते है ओर ग़ुस्से मे ये नही सोचते की जीसे हम गलत कह रहे है वो तो अपना ही है | ओर फिर ये सब भूल कर हम अपने रोज़ मर्रा की ज़िंदगी मे खो जाते है ओर भूल जाते है की जीसे हमने कहा था उस पर ओर उसके आस पास के लोगो पर क्या गुजर रही होगी |
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