रात को अपने पड़ोस में रहने वाले एक परिवार में मैं गयी, उनके यहाँ उनके बेटे के परिवार में नए सदस्य का आगमन हुआ था..अर्थात बेटी का जन्म हुआ था .
मैं एक पास ही रहने वाली भाभी जी के साथ उनके घर गयी. वहाँ पहुँच कर कुछ देर हम बाहर ड्राइंग रूम में बैठ गए...आंटी जी ने वोही हमें बिठा दिया पर मैंने मन में तो नन्ही सी कोमल सी गुडिया को देखने कि पड़ी थी. इसलिए चाहती थी जल्दी से जल्दी वाहन से हमें अंदर उसके पास तक ले जाया जाये.मगर सब हमसे बात करने लगे..मुझसे पूछा जाने लगा मम्मी क्यों नहीं आयी, पापा क्यों नहीं आये , मैंने जल्दी से उत्तर दे दिया इस उम्मीद के साथ कि अब अंदर हम जायेंगे. मगर फिर वोही सिलसिला जारी हो गया भाभी जी के साथ ..उनसे भी पूछा जाने लगा भैया के बारे में कि वो क्यों नही आये?
मुझे मन ही मन ये फिक्र हो रही थी कि कब में उस नन्ही सी कलि को देख सकुंगी ..या आज देखने को मिलेगा भी या नहीं?
वो इसलिए क्यों कि उनके यहाँ उस बच्चे कि छठी थी ..मतलब उसको जन्म लिए हुए ६ दिन पूरे हुए थे. अब ख्यालो का सिलसिला दिल-ओ जहाँ में चल रहा था तभी मेरे पास जिनके घर हम गए थे, उनकी बेटी का आगमन हुआ, पहले मैंने बढ़ायी डी बुआ बनने की और हमने फिर तपाक से कह ही डाला..कि बच्ची कहा है??
उससे कहा कि देखनी है???
हमें कहा और क्या...
उससे कहा अंदर है आओ
मैं पीछे हो ली, मेरे साथ वो भाभी जी और उनकी दो बेटियाँ भी अंदर चल दी.
जब हम अंदर पहुंचे तो छोटी सी बच्ची सोयी हुई थी..माँ के साथ..एक दम नाजुक नाजुक ..गोरी-गोरी प्यारी सी.
बहुत खुशी हुई उसको दकेह कर और तसल्ली भी मिली..उसको कुछ गिफ्ट्स दिए मैंने और बस उसको देखने बैठ गयी.
सारे लोग कितना खुश थे मैंने देखा ..वो भैया जिनकी वो बेटी थी उनकी पत्नी अंकल आंटी और बाकि सारे उनके परिजन बहुत खुश थे.
कुछ देर उस उस नन्ही सी गुडिया के साथ बैठके फिर हुआ कि चलो खाना खा लो..पर मेरा मन भी कहा सुन रहा था , मुझे तो बस वही उसके साथ रहने का मन हो रहा था.
पर सब उठके जाने लगे तो हम भी सबके साथ हो लिए..रात के १० बज ही गए थे तो मजबूरी भी थी .घर भी आना था.
फिर खाना खाया और सबसे कुछ देर मिली बातें हुई. उसके बाद घर आयी.
बस एक संतोष था कि लड़किया हमेशा अनचाही नहीं होती..उनके जन्म पर भी घर वालो को खुशी हासिल होती है.और यही खुशी मेरे लिए बहुत बड़ी थी.
बस सभी होने वाले बच्चे कि देखभाल करे प्यार से न कि बेटे या बेटी में फर्क करे. तभी तो स्वस्थ समाज का निर्माण हो सकता है.
हर बच्ची अमूल्य है ये बात हम सबको समझनी ही होगी. कल का भविष्य है ये बेटियाँ .इनकी आज देखभाल करना आप सभी का फ़र्ज़ है .
4 comments:
बहुत सुंदर चित्रों से सजी मनोहारी पोस्ट।
हरीश गुप्त की लघुकथा इज़्ज़त, “मनोज” पर, ... पढिए...ना!
shukriya
बहुत ही सुन्दर विचार.....
Bahoot hi touching story keh gayeiN aap...sach me ladkiyaaN ziyada pyaari hoti haiN....our dekhbhaal bhi wahi kerti haiN....
Harash
Post a Comment