दोस्तों मेरे कुछ ख्याल या अहसास जिनको में कविता का रूप देना नहीं चाहती हूँ , वो आपके सामने में यहाँ कहानी या लेख के रूप में लेकर आती हूँ ताकि में उस ख्याल या अहसास के साथ इन्साफ कर सकूँ या ये कहू की जिससे वो अपनी सही पहचान पा सके..
Sunday, December 30, 2012
Saturday, September 15, 2012
शब्दों का बंधन
प्यार !
प्यार तब भी होता है, जब शब्दों के सेतु बीच में नहीं होते, प्यार तब भी होता है
जब शब्दों का बंधन एक सेतु बन जाता है; एक किनारा दूसरे किनारे से मिलने को इन
शब्दों के पुल से इस पार से उस पार तक आता जाता है. पर बिना इस शब्दों के सेतु के,
जो चीज़ एक महीन रेखाओं से निर्मित एक सेतु दो लोगों के दरमियान बनाती है, वो सबसे
मजबूत बंधन होता है. जिसके दो किनारे हर वक्त जुड़े रहते है एक दूसरे से बिना किसी
को नज़र आये, बिना एक दूसरे को छुए , बिना एक दूसरे के साथ बात करे, पर वो हरपल साथ
है क्यों की वो महीन रेखाएं एहसासों की बनी होती है, जो एक दिल को दूसरे दिल से
जोड़ती है. हर पल किसी को अपने पास सिर्फ अहसासों के माध्यम से ही पाया जा सकता है . पर क्या ये अहसास
आज दिलों में घर करते है ? शायद लोग अपनी अपनी दुनिया में इतना व्यस्त है, की किसी
दूसरे के लिए अहसास दिल में पैदा हो पाना बहुत ही मुश्किल है. पर कभी अकेले में
खुद से एक सवाल करना क्या आपको नहीं लगता की किसी
के दिल में आपके लिए अहसास हो ? फिर कोई आपसे भी तो ये उम्मीद कर सकता है
...तो क्यों न हम किसी को उसके लिए अपने होने का अहसास इन महीन रेखाओं से कराये.
अहसास के बिना जिंदगी कितनी सूनी है ये तभी पता लगेगा जब
आपके दिल में किसी के लिए कोई न कोई अहसास होगा. और आपके लिए कोई दिल अहसास रखे
ऐसी दुआ में करुँगी.
आपका दिन शुभ हो .
Thursday, September 13, 2012
हमारी मातृभाषा हिंदी
आज हिंदी दिवस है . क्या सिर्फ एक दिन धूम धाम से हिंदी दिवस मन लेने से हम अपनी मातृभाषा को सही स्थान या सम्मान दे देते है? क्या हमारी मातृभाषा आज हमारे ही दिलों में स्थान पाने को बेकरार नहीं है ?
हम सब आज अपनी इस भाषा के प्रति कितने ईमानदार है एक बार खुद से ये पूछे . क्या आप कहीं भी बेधडक हिंदी बोलते हो? नहीं आज अधिकांश लोगों को हिंदी में किसी से बात करना शर्मनाक लगता है. वो अधिकतर अन्ग्रेजी का दामन पकडे हुए चलते है. क्या हमारी मातृभाषा इतनी गयी गुजरी है की हम किसी के सामने इसका प्रयोग अपने मन से न कर सके??..ऐसे कितने ही सवाल है बहुत से लोगो के मन में पर उत्तर शायद ही कोई खोजने की कोशिश करता हो. सभी सरकारी संस्थाए १४ सितम्बर को हिंदी दिवस पर सेमिनार या कार्यशाला मन कर अपने अपने फ़र्ज़ की इतिश्री समझ लेती है. और फिर रह जाती है अपने ही देश में अपने अस्तित्व को तलाशती हमारी अपनी हिंदी .
हम सब आज अपनी इस भाषा के प्रति कितने ईमानदार है एक बार खुद से ये पूछे . क्या आप कहीं भी बेधडक हिंदी बोलते हो? नहीं आज अधिकांश लोगों को हिंदी में किसी से बात करना शर्मनाक लगता है. वो अधिकतर अन्ग्रेजी का दामन पकडे हुए चलते है. क्या हमारी मातृभाषा इतनी गयी गुजरी है की हम किसी के सामने इसका प्रयोग अपने मन से न कर सके??..ऐसे कितने ही सवाल है बहुत से लोगो के मन में पर उत्तर शायद ही कोई खोजने की कोशिश करता हो. सभी सरकारी संस्थाए १४ सितम्बर को हिंदी दिवस पर सेमिनार या कार्यशाला मन कर अपने अपने फ़र्ज़ की इतिश्री समझ लेती है. और फिर रह जाती है अपने ही देश में अपने अस्तित्व को तलाशती हमारी अपनी हिंदी .
Wednesday, September 5, 2012
टीचर्स डे
आज
टीचर्स डे है आप सभी को टीचर्स डे कि हार्दिक शुभकामनये..
आज का दिन सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी का जन्मदिन है जो एक महान अध्यापक थे और उनके जन्म दिन पर ही ये दिवस मनाया जाता है .
आज आप अपने अपने
उन अध्यापको को याद करे जिन्होंने आपकी उस वक्त मदद कि जब आपको उसकी बहुत
जरुरत थी .और आप उनके बारे में यहाँ लिख भी सकते हो. मेरे एक सर थे जब में
क्लास ५ में थी जिनका नाम तो अब मुझे याद नहीं है पर उनकी उस वक्त उतनी
उम्र थी कि हमें लगता था वो सबसे ज्यादा आगे वाले इंसान है ..उनके सारे बाल
सफ़ेद थे और उनके चेहरे से उनकी उम्र ८० साल के करीब तो लगती ही थी मेरे
हिसाब से. पर उनके अंदर बच्चो के लिए जितना प्यार था वो शायद ही कभी मैंने
देखा किसी इंसान के अंदर . और मैं अगर मेरी बात करू तो उनका मेरे लिए ये
प्यार ही था जो उन्होंने मेरे किसी भी बीमारी के बहाने को यकीन मान कर मुझे
छुट्टी तो दी ही मेरा हाल लेने घर भी आये . और साथ में कुछ न कुछ मेरे लिए
खाने के लिए भी वो हमेशा लाके आये. ..उनको सभी गुरु जी कहते थए थे तो वो
इंग्लिश के टीचर पर उन्होंने जो प्यार कापाठ या सबके साथ अच्छाई करने का पथ
पढाया उसपे आज भी अमल करने कि में कोशिश करती हूँ. आज उनकी याद आ रही है
जानती हू वो अब इस दुनिया में होगे नहीं, पर जहाँ भी हो अच्छे हो दुआ है.
Friday, July 6, 2012
मानसून और पहली बारिश कि दस्तक
जैसे गर्मी से झुलसता मन एक हवा के झोंके का इंतज़ार करता है
और हवा का एक झोंका ही आकार तपती गर्मी से रहत दे जाता है. वैसे ही आज कि बारिश ऐसे
आई जैसे कई दिन से अपनी प्रेमिका के दीदार का इंतज़ार कर रहा कोई प्रेमी अपनी प्रेमिका
के ना आने पे दुखी हो जाता है और थक कर घर चलने को होने लगता है , तभी उसे दूर से आती
हुई प्रेमिका दिख जाती है और वो अपने सब दुःख भूल कर दौड पढता है आपको आलिंगन करने
के लिए. बहुत दिन से सभी दुखी थे परेशां थे गर्मी से झुलसता हर इंसान बस आसमान कि ओर
इस आशा में देखता था कि कब ये काले बदल पानी लेकर आये और इस प्यासी धारा को तृप्त कर
जाए . पर इन्द्र देव भी जैसे जून के महीने में छुट्टी पे थे. और जिस तरह दिल्ली और आसपास के इलाके में
स्कूल कि छुट्टियाँ कर दी गयी थी, उसी प्रकार इन्द्र देव भी अपनी छुट्टियाँ आगे बढा कर आराम फरमाने लगे थे . फिर
अचानक उनको जैसे अपना काम याद आया और थोडा सा आलस छोड़ कर उन्होंने सुबह सुबह जरा बारिश
कर धारा पर गर्मी से कराहते लोगों को थोड़ी रहत दे दी और इस मानसून कि पहली बारिश ने अपनी दस्तक सुबह होते ही दे दी .....और लोग अब राहत कि सांस लेने
ही लगे थे कि उनको लगा कि चलो अब इनको पूरा मजा ही दे दिया जाये. और फिर होना क्या
था उन्होंने अपने सारे काले बादलों को आदेश दिया जाओ और देल्ली और आसपास का सारा इलाका इतना भिगाओ कि लोग खुशी से झूम जाये . और
काले बदरा ने भी इन्द्र देव के आदेश को मन
और शाम होते होते सबको खूब नहलाया और ठंडक का अहसास कराया. कुछ लोगो को “आज रपट जाए तो हमें न उठइयो “ जैसे अंदाज़ में नहाते हुए
देखा तो कुछ लोगो को “रिम झिम गिरे सावन सुलग सुलग जाये मन” जैसे अंदाज़ मन ही मन
नहाने को बैचैन देखा. कुल मिलकर एक सुखद शाम थी ये मानसून के पहले दिन के साथ. पेड,
पत्तियां , घास ने जहा नहा धोकर अपने हरे रंग को और निखारा वोही पशु , पंक्षी अपने
अपने डेरों की तरफ लौटते हुए इन्द्र देव
को मन ही मन धन्यवाद दे रहे थे कि उन्होंने उनकी जरा सी सुधि तो ली.
आप सभी को भी इस मानसून की बारिश का भरपूर आनंद मिले इसी
दुआ के साथ अभी बस इतना ही .
बरखा रानी के इस
अनोखे अंदाज़ के साथ आप सभी को एक गीत गुनगुनाने के लिए कहे जा रही हूँ.....
“मेघा रे मेघा रे न तू परदेश जा रे
आज तू प्रेम का सन्देश बरसा दे .”
आज तू प्रेम का सन्देश बरसा दे .”
Saturday, May 12, 2012
मदर्स डे
आज फिर मदर्स डे है. एक खूबसूरत अहसास से भरा दिन..वैसे हर दिन माँ के लिए प्यार भरा है लेकिन आज का दिन अगर में कुछ खुशी माँ के चहरे पे ला सकी तो दिन और खूबसूरत होगा.
लव उ माँ
लव उ माँ
Wednesday, March 7, 2012
महिला दिवस कि हार्दिक शुभकामनाएँ
प्रिय दोस्तों
आज महिला दिवस और होली दो- दो अवसर एक साथ आये है. आप सभी को होली कि हार्दिक शुभकामनाएँ . और सभी महिलाओ को महिला दिवस कि हार्दिक शुभकामनये .
होली क्यों मनाई जाती है ..कहा कि होली प्रसिद्ध है ये हम सब जानते ही है .
अन्तराष्ट्रीय महिला दिवस कब और क्यों मनाया जाता है ये में पहले ही यहाँ अपने ब्लॉग पर एक पोस्ट में आप सभी को बता चुकी हूँ .
हां आज हम कुछ बात कर सकते है होली और महिलाओ की. अब इस बात से सबसे पहला जो नाम आता है एक महिला का वो हम सब जानते है ...अपने कन्हाई कि प्यारी राधा राणी . राधा और कृष्ण की बरसाने या ब्रज की होली विश्व प्रसिद्ध है. फिर राधा का नाम आये और सखियाँ न आये ध्यान ऐसा भी नहीं हो सकता .नन्द का छोरा अगर अपने साथ सब ग्वाल बाल को लेकर बरसाने जाता ..राधा के संग होली खेलने, तो सखियाँ भी होली के रंग में रंग कर कान्हा के और ग्वाल बाल के साथ खूब होली खेलती चुहल बाजी करती.
और बस होली के साथ साथ रास भी होता राधा कृष्ण का. बरसाने कि लठमार होली के विषय में भी सबने सुना ही होगा. उसका अपना ही मज़ा है . ये तो हुई राधा कृष्ण कि होली. अब आज कल कि होली में होली कम छेड़ छाड ज्यादा है और पहले जहाँ फूलो के रंग से रंग मनाये जाते थे य फूलों कि होली होती थी वोही अब हानिकारक केमिकल्स से बने रंगों से होली खेल कितने ही लोगो कि आंखे खराब हो जातीहै व कितने ही लोगो को त्वचा सम्बन्धी रोग हो जाते है .अक्सर लोग महिलाओ के साथ ऐसा बर्ताव करते है जो उन्हें नहीं करना चाहिए . इसलिए बहुत कम महिलाये होली खेलना आज के समय में पसंद करती है . क्यों कि होली के रंग और होली का हुडदंग दोइनो ही उनको ऐसा करने से रोकते है. तो क्या आज महिला अपनी मर्ज़ी से कोई त्यौहार भी नहीं मन सकती ?? ये प्रश्न सहज ही मन में आता है.
अब रात का काफी समय हो चूका है इसलिए ये प्रश्न और इसका उत्तर इस विषय में आप खुद ही सोचो में चली.
आप सभी को होली कि हार्दिक शुभकामनये
और महिला मित्रों को महिला दिवस कि शुभकामनाएं
time...2.00 am
आज महिला दिवस और होली दो- दो अवसर एक साथ आये है. आप सभी को होली कि हार्दिक शुभकामनाएँ . और सभी महिलाओ को महिला दिवस कि हार्दिक शुभकामनये .
होली क्यों मनाई जाती है ..कहा कि होली प्रसिद्ध है ये हम सब जानते ही है .
अन्तराष्ट्रीय महिला दिवस कब और क्यों मनाया जाता है ये में पहले ही यहाँ अपने ब्लॉग पर एक पोस्ट में आप सभी को बता चुकी हूँ .
हां आज हम कुछ बात कर सकते है होली और महिलाओ की. अब इस बात से सबसे पहला जो नाम आता है एक महिला का वो हम सब जानते है ...अपने कन्हाई कि प्यारी राधा राणी . राधा और कृष्ण की बरसाने या ब्रज की होली विश्व प्रसिद्ध है. फिर राधा का नाम आये और सखियाँ न आये ध्यान ऐसा भी नहीं हो सकता .नन्द का छोरा अगर अपने साथ सब ग्वाल बाल को लेकर बरसाने जाता ..राधा के संग होली खेलने, तो सखियाँ भी होली के रंग में रंग कर कान्हा के और ग्वाल बाल के साथ खूब होली खेलती चुहल बाजी करती.
और बस होली के साथ साथ रास भी होता राधा कृष्ण का. बरसाने कि लठमार होली के विषय में भी सबने सुना ही होगा. उसका अपना ही मज़ा है . ये तो हुई राधा कृष्ण कि होली. अब आज कल कि होली में होली कम छेड़ छाड ज्यादा है और पहले जहाँ फूलो के रंग से रंग मनाये जाते थे य फूलों कि होली होती थी वोही अब हानिकारक केमिकल्स से बने रंगों से होली खेल कितने ही लोगो कि आंखे खराब हो जातीहै व कितने ही लोगो को त्वचा सम्बन्धी रोग हो जाते है .अक्सर लोग महिलाओ के साथ ऐसा बर्ताव करते है जो उन्हें नहीं करना चाहिए . इसलिए बहुत कम महिलाये होली खेलना आज के समय में पसंद करती है . क्यों कि होली के रंग और होली का हुडदंग दोइनो ही उनको ऐसा करने से रोकते है. तो क्या आज महिला अपनी मर्ज़ी से कोई त्यौहार भी नहीं मन सकती ?? ये प्रश्न सहज ही मन में आता है.
अब रात का काफी समय हो चूका है इसलिए ये प्रश्न और इसका उत्तर इस विषय में आप खुद ही सोचो में चली.
आप सभी को होली कि हार्दिक शुभकामनये
और महिला मित्रों को महिला दिवस कि शुभकामनाएं
time...2.00 am
Monday, March 5, 2012
tribute to jagjit singh ji by Gulzar, bhupendra ji, mitalli ji
कल शाम को अर्थात ४/३/१२ को एक प्रोग्राम :-" tribute to jagjit singh ji by Gulzar, bhupendra ji, mitalli ji and salim arif" में मैंने शिरकत की. देल्ही के सिरिफोर्ड ऑडिटोरियम में ये प्रोग्राम था . एक अनोखा अनुभव था तो लेकिन जो सोचा था वैसा कुछ नहीं मिला. जगजीत सिंह जी के लिए रकहे गए tribute me उनका ही कहीं पता नहीं लगा. कुछ पल 1st half me आये जब गुलज़ार जी ने जगजीत सिंह जी के बारे में बात कि तो अच्छा लगा. किन्तु बाद में दर्शको को अपनी पसंद बार बार कहनी पढ़ी मगर कुछ ही पूरी हो सकी. वहाँ हमें गुलज़ार जी ने कई वाक्यात बताये उनके और जगजीत सिंह जी के बीच कि नोकझोंक के, वोही भूपी जी(भूपेंद्र जी जिनको सभी प्यार से भूपी बोलते है) अपने और जगजीत सिंह जी के जीवन के शुरुआती दिनों के सन्घर्ष के दिनों के विषय में बताया.
कुल मिला कर एक खूबसूरत शाम थी ये .
Wednesday, February 29, 2012
विश्व पुस्तक मेला
आज २० वां विश्व पुस्तक मेला दिल्ली के प्रगति मैदान में शुरू हुआ . खबर क्कुछ दिन पहले ही मिल चुकी थी. एक दोस्त ने बताया था . तब से ही इंतज़ार था उन पलों का जब एक बार फिर में वह जा सकूँ. ऐसा नहीं है कि मुझे बुक पढ़ने का बहुत शौक है. पर किताबें लेने का शौक है .इस उम्मीद में कि जिस दिन मेरे पास वक्त होगा उस दिन में इत्मीनान के साथ बैठूंगी और इन किताबों में खुद को कहीं न कहीं ढूढ लुंगी . ऐसे भी इस प्रकार के मेले में जाना मुझे एक सुखद अहसास देता है . सो सोचा चलो चलके देखते है कुछ किताबें अपने लिए. और मिल लेंगे कुछ इस आभासी दुनिया के दोस्तों से वास्तविकता में. पर वक्त था ४ बजे तक का, जिसमे ग्रेटर नॉएडा से जाना आना भी मुश्किल. एक दो और लोगो को साथ में जाना था क्यों कि उन्होंने कहा था जब में जाऊ उनको साथ ले चलूँ..इसी कारण से १२.३० निकलने का वक्त तय हुआ. मगर ऐसा होता है अक्सर इंतज़ार लंबा और लंबा होता जाता है (वैसे में बता दूँ मुझे इंतज़ार करना कतई पसंद नहीं है ), ऐसा ही हुआ और १.३० पर इन्तजार जाके खत्म हुआ . वो जन आये और हम निकल पड़े दिल्ली की ओर.
करीब २.४५ पर हम दिल्ली पहुंचे और गाड़ी को पार्क करने कि जगह देखी , हम खुश कि जल्दी ही गेट न. ८ के पास हमें पार्किंग कि जगह मिल गयी. मगर अफ़सोस पता लगा टिकट लेने हमें गेट न. १ पर जाना होगा. बहुतु गुस्सा आया कि एक तो हम लेट हो चुके है और अब और लेट होगा. खैर फिर हमने गाड़ी पार्किंग से ली और चल दिए गेट न. एक कि तरफ. फिर अचानक भैया को याद आया कि वो अंदर प्रगति मैदान में ही पार्किंग कर सकते है . बस जाके वह गाड़ी पार्क कि तब राहत मिली कि कुछ टाइम तो बचा अपना. गाडी पार्क करके चल दिए स्टाल कि तरफ.
अब वक्त कम और देखने को इतना कुछ, पता चला कि २५०० स्टाल लगे है . कहा जाये क्या देखे ये सोचते हुए आगे बढ़ रहे थे . हॉल न. एक के सामने से गुजरे तो तय हुआ आते वक्त वह जायेंगे अभी आगे बढते है. आगे बढते हुए पहुंचे हॉल न. ११ .फिर देखना शुरू हुआ स्टालों को. देखा विभिन्न भाषाओं कि किताबों से भरे पड़े थे उस तरफ के स्टाल. हमें वक्त बचने के लिए तय किया कि प्रमुख प्रकाशन के स्टाल को देखा जायेगा अभी. फिर शुरू हुआ सिलसिला ..राजकमल प्रकाशन , साहित्य अकादमी , नेशनल बुक ट्रस्ट , ज्ञानपीठ प्रकाशन ,वाणी प्रकाशन इन सबको देखा. कुछ बुक्स भी ली . हिंदी के बड़े व प्रतिष्ठित नामों वाले रचनाकारों कि किताबें अपने लिए ले ली. जैसे कबीर दास, नागर्जुन , अज्ञेय , फणीश्वर नाथ रेनू,मजाज इत्यादि .
इसी बीच देखा एक जगह कुरान मिल रही है तो साथ के सभी ने लेली. में जानना चाहती थी कि इस पवित्र किताब में क्या क्या लिखा है . एक प्रकाशक के स्टाल को देखने जा ही रही थी कि एक आवाज सुनाई दी -"आप सखी है??"
मैंने पलट कर देखा दो सज्जन खड़े हुए है पीछे.
मैंने हां में जवाब दिया .
फिर सामने वाले ने कहा कि आप बहुत अच्छा लिखती है आपके ऑटोग्राफ चाहिए . मैंने कहा ऐसा तो कुछ भी नही है कि मेरे ऑटोग्राफ दूँ में . मेरे किस लिए चाहिए .
उन्होंने कहा कि हमें चाहिए.
मैं पहचानने कि कोशिश कर रही थी और वो मुस्कुरा रहे थे .ये तो तय था हम पहली बार मिले थे वास्तविकता में .
फिर एक अंदाज़ लगया कि वो कौन है. कुछ कुछ समझ में आ भी गया ..मैंने पुचा फिर कहा लगा है स्टाल आपका ?? उन्होंने बताया इसी हाल में एंट्री गेट गेट के पास.
और तब पक्का हो गया यकीन कि वो अरुण रॉय जी है ज्योतिपर्व प्रकाशन से. (मुझे पहले उन्होंने बताया था कि उनका प्रकाशन जो शुरू हो रहा है उसका स्टाल लगेगा मेले में .)
उन्होंने अपने स्टाल पर आने को कहा और हमें वह से विदा ली.
उसके बाद भैया ने बताया हिंद युग्म का भी स्टाल वही है. तो जा पहुंचे वह भी ..इस बार जब हम पहुंचे तो बहुत जयादा लोग नहीं थे वहाँ..४ लोग थे ..एक शैलेश जी ..जिन्होंने हिंद युग्म कि शुरुआत कि थी और शुरुआत दिनों से ही दोस्त बन गए थे मेरे. उसके अलावा सुनीता शानू जी और दो लोग और थे. मेरी पहचान बस शैलेश जी से थी बाकि लोगो के लिए में अपरिचित थी और वो मेरे लिए. खैर सबसे मिलके अच्छा लगा. वह कुछ किताबें देखी . शैलश जी ने फिर २७ को उनके प्रकाशन हिन्दयुग्म के पुस्तक विमोचन समारोह में आने का निमंत्रण दिया . हमने आने कि पूरी कोशिश करने कि बात कही और फिर शैलेश जी से इज़ाज़त मांगी क्यों कि अरुण जी के स्टाल कि तरफ भी जाना था. फिर एक दो प्रकाशन के तरफ जल्दी जल्दी नज़र डाली और चल दिए अरुण के ज्योतिपर्व कि तरफ. वह जाके उनके मुलाकात की और बुक्स देखी .
फिर उनसे भी इज़ाज़त ले क्यों कि वक्त ज्यादा हो चूका था. अब वापस भी आना था .
फिर चले कुछ खाना पीना किया और चल दिए . सबने कहा कि एक नज़र हॉल नो एक में डालते चले . वह जाके कुछ एक स्टाल देखे और फिर वापस चल दिए. सोचा फिर आउंगी तब राम से किताबों के साथ कुछ वक्त बिताउंगी.
एक सुखद अहसास रहा.
करीब २.४५ पर हम दिल्ली पहुंचे और गाड़ी को पार्क करने कि जगह देखी , हम खुश कि जल्दी ही गेट न. ८ के पास हमें पार्किंग कि जगह मिल गयी. मगर अफ़सोस पता लगा टिकट लेने हमें गेट न. १ पर जाना होगा. बहुतु गुस्सा आया कि एक तो हम लेट हो चुके है और अब और लेट होगा. खैर फिर हमने गाड़ी पार्किंग से ली और चल दिए गेट न. एक कि तरफ. फिर अचानक भैया को याद आया कि वो अंदर प्रगति मैदान में ही पार्किंग कर सकते है . बस जाके वह गाड़ी पार्क कि तब राहत मिली कि कुछ टाइम तो बचा अपना. गाडी पार्क करके चल दिए स्टाल कि तरफ.
अब वक्त कम और देखने को इतना कुछ, पता चला कि २५०० स्टाल लगे है . कहा जाये क्या देखे ये सोचते हुए आगे बढ़ रहे थे . हॉल न. एक के सामने से गुजरे तो तय हुआ आते वक्त वह जायेंगे अभी आगे बढते है. आगे बढते हुए पहुंचे हॉल न. ११ .फिर देखना शुरू हुआ स्टालों को. देखा विभिन्न भाषाओं कि किताबों से भरे पड़े थे उस तरफ के स्टाल. हमें वक्त बचने के लिए तय किया कि प्रमुख प्रकाशन के स्टाल को देखा जायेगा अभी. फिर शुरू हुआ सिलसिला ..राजकमल प्रकाशन , साहित्य अकादमी , नेशनल बुक ट्रस्ट , ज्ञानपीठ प्रकाशन ,वाणी प्रकाशन इन सबको देखा. कुछ बुक्स भी ली . हिंदी के बड़े व प्रतिष्ठित नामों वाले रचनाकारों कि किताबें अपने लिए ले ली. जैसे कबीर दास, नागर्जुन , अज्ञेय , फणीश्वर नाथ रेनू,मजाज इत्यादि .
इसी बीच देखा एक जगह कुरान मिल रही है तो साथ के सभी ने लेली. में जानना चाहती थी कि इस पवित्र किताब में क्या क्या लिखा है . एक प्रकाशक के स्टाल को देखने जा ही रही थी कि एक आवाज सुनाई दी -"आप सखी है??"
मैंने पलट कर देखा दो सज्जन खड़े हुए है पीछे.
मैंने हां में जवाब दिया .
फिर सामने वाले ने कहा कि आप बहुत अच्छा लिखती है आपके ऑटोग्राफ चाहिए . मैंने कहा ऐसा तो कुछ भी नही है कि मेरे ऑटोग्राफ दूँ में . मेरे किस लिए चाहिए .
उन्होंने कहा कि हमें चाहिए.
मैं पहचानने कि कोशिश कर रही थी और वो मुस्कुरा रहे थे .ये तो तय था हम पहली बार मिले थे वास्तविकता में .
फिर एक अंदाज़ लगया कि वो कौन है. कुछ कुछ समझ में आ भी गया ..मैंने पुचा फिर कहा लगा है स्टाल आपका ?? उन्होंने बताया इसी हाल में एंट्री गेट गेट के पास.
और तब पक्का हो गया यकीन कि वो अरुण रॉय जी है ज्योतिपर्व प्रकाशन से. (मुझे पहले उन्होंने बताया था कि उनका प्रकाशन जो शुरू हो रहा है उसका स्टाल लगेगा मेले में .)
उन्होंने अपने स्टाल पर आने को कहा और हमें वह से विदा ली.
उसके बाद भैया ने बताया हिंद युग्म का भी स्टाल वही है. तो जा पहुंचे वह भी ..इस बार जब हम पहुंचे तो बहुत जयादा लोग नहीं थे वहाँ..४ लोग थे ..एक शैलेश जी ..जिन्होंने हिंद युग्म कि शुरुआत कि थी और शुरुआत दिनों से ही दोस्त बन गए थे मेरे. उसके अलावा सुनीता शानू जी और दो लोग और थे. मेरी पहचान बस शैलेश जी से थी बाकि लोगो के लिए में अपरिचित थी और वो मेरे लिए. खैर सबसे मिलके अच्छा लगा. वह कुछ किताबें देखी . शैलश जी ने फिर २७ को उनके प्रकाशन हिन्दयुग्म के पुस्तक विमोचन समारोह में आने का निमंत्रण दिया . हमने आने कि पूरी कोशिश करने कि बात कही और फिर शैलेश जी से इज़ाज़त मांगी क्यों कि अरुण जी के स्टाल कि तरफ भी जाना था. फिर एक दो प्रकाशन के तरफ जल्दी जल्दी नज़र डाली और चल दिए अरुण के ज्योतिपर्व कि तरफ. वह जाके उनके मुलाकात की और बुक्स देखी .
फिर उनसे भी इज़ाज़त ले क्यों कि वक्त ज्यादा हो चूका था. अब वापस भी आना था .
फिर चले कुछ खाना पीना किया और चल दिए . सबने कहा कि एक नज़र हॉल नो एक में डालते चले . वह जाके कुछ एक स्टाल देखे और फिर वापस चल दिए. सोचा फिर आउंगी तब राम से किताबों के साथ कुछ वक्त बिताउंगी.
एक सुखद अहसास रहा.
Saturday, February 18, 2012
एक दीवाना था ..एक जिंदगी दो से एक बनी
एक नज़र पढते ही वो कोमलता के साथ कैसे हृदय में उतरी, उसकी उसको भी खबर न हुई . खबर हुई तब जब उसके अंदर एक बैचैनी ने जन्म ले लिया और कर दिया जुदा खुद से उसे.
उसके भीतर ही भीतर रहने लगी थी वो बनके रूह य कहू साया जो आँखों के रास्ते उसमें धीरे से उतर गयी थी एक ही पल में .
खुद को रोकते रोकते भी उसने जाकर उस हसीं नाजनीन को अहसास अपना जता ही दिया पर क्या हुआ नाराजगी ???
हां भी या कहे नहीं भी . हां इसलिए कि बिना कुछ कहे उस लड़की का कहीं चले जाना एक गुस्से के इज़हार जैसा लगा लड़के को. और न इसलिए कि लड़की को एक सुखद अहसास ने आ घेरा जब उसने देखा कि लड़का उसके पीछे उसको ढूंढता भुआ आ ही गया .
क्या यही सच है एक जीवन का ???
हां अक्सर यही होता है जो हम सोचते है तस्वीर का रुख वैसा न हो दूर होता है और हम समझते है कि ऐसा है वैसा है .
लगता है ये चीज़ य इंसान हमें पसंद नहीं है ...पर जब वोही न मिले बाकि सब मिले तब अहसास होता है कि हमें तो उसी कि चाहत है बाकि चीज़े हमें खुश नहीं कर सकती . उसका मिलना हमें जिंदगी भर कि खुशिया दे सकता है .
फिर मिलना उसी इंसान से, वो भी चलते चलते कहीं यूंही अचानक ...और वो भी उस वक्त जब उसके साये यादों के रूप में हम पर छाए हो य हमारे ही साथ चलने पर आमादा हो , कितन सुखद आश्चर्य भरा पाल होगा न वो . बस फिर लगता है उन ही पलों में हमारी पूरी दुनिया सिमट जाये.
और बिना एक पल गवाए उसी पल में वो जिंदगी जीने के लिए एक दूसरे के साथ हो लेते है .उनकी खुशिया भी तो तभी है जब वो साथ हो ..वरना...अश्क है...आहें है...तन्हाई है ...जग कि रुसवाई है .
और उनका मिलना अहसास है , सच्चे प्यार का, समर्पण का .
कुछ ऐसा ही किस्सा होता है ..एक दीवाने का .
आज देखी जब ये तो बहुत अपनी सी लगी या फिर कहूँ लगा जैसे कोई एक जिंदगी हमारे सामने जी रहा है सच्चाई के साथ. बहुत अच्छा लगा इसको देख कर .
Friday, February 10, 2012
कुछ खुशिया
हां हां सब जानते है तेरे बारे मैं कि तू कैसी है.
अच्छा क्या जानते है सब मेरे बारे में बताओ जरा ,में भी तो जानू जो सब जानते है?
रहने दे ......
क्या रहने दूँ ? मुझे बताओ न क्या जानते है सब .
ये कह कर आशा ने गौर से अपने पति का मुह देखा और उसकी तरफ से किसी उत्तर कि प्रतीक्षा करने लगी.
पर उसका पति दूसरी तरफ मुह करके बैठ गया .
तब आशा ने अपनी मालकिन नीमा से (जिनके घर में वो रहती थी ) कहा - दीदी मुझे ऐसे ही बोलता है ये .
नीमा ने तब बोला क्यों बोलते हो ऐसे तुम इसको?
तब उसका पति शांत रहा कुछ नहीं बोला .
ये उनकी अक्सर होने वाली लड़ाइयों में से एक दिन का दृश्य था .
आशा जो कि एक मुश्लिम लड़की थी 'आयशा' जिसने अपनी मर्ज़ी से शादी कि थी और वो भी एक हिंदू लड़के से.
सबकी मर्ज़ी के खिलाफ जाके, उसने घर से भागकर दूसरे शहर में जाकर शादी की थी ,ये सोच कर कि उसकी दुनिया प्यार से भरी रहेगी ,
अपने प्यार के लिए अपना धर्म नाम सब बदल लिया .
लेकिन हुआ क्या? वो बैठी सोच रही थी और अपने नसीब को कोस रही थी .
जिसके लिए घर वाले छोड़े वही इंसान उसके बारे में गलत बातें सोचता है .
वो बस और कुछ न कर सकी ..सिवाय आंसु बहाने के.
उसकी दुनिया अब थी दो बच्चे और पति . रोज काम पर जाना और घर का काम सुबह शाम . और पति , जब मर्ज़ी हुई काम किया, वरना घर में आराम किया.
और आशा फिर उसी पति कि हर ख्वाहिश पूरी करने के लिए जुट जाती अपने घर में कुछ खुशिया जुटाने कि खातिर .
Friday, February 3, 2012
हिंदी में बात क्यों नहीं करते दिल्ली के लोग
हिंदी में बात क्यों नहीं करते दिल्ली के लोग, यह लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स के 23वें संस्करण में पीपुल ऑफ द ईयर से नवाजे जाने के बाद आशा भोंसले ने हिंदी में भाषण देते हुए कहा कि उन्हें इस बात का बहुत आश्चर्य है कि दिल्ली के लोग हिंदी में बात नहीं करते हैं। आशा जी का वक्तव्य था - कि मुझे लगता था कि दिल्ली में लोग हिंदी पसंद करते होंगे और इसी भाषा में बात करते होंगे। हालांकि मुझे यह जानकर हैरानी हुई कि दिल्ली में भी लोग हिंदी की बजाय अंग्रेजी में बात करना ज्यादा पसंद करते हैं। आशा भोंसले ने अपना पूरा भाषण हिंदी में ही दिया। उन्होंने कहा कि लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स द्वारा सम्मानित किए जाने से वे बहुत खुश महसूस कर रही हैं। उन्होंने कहा कि उन्हें खुशी है कि लोगों ने उनके हिंदी में दिए गए भाषण को समझा। अब उनको हम कैसे समझाए, कि जो दिल्ली हमारी राजधानी है वहाँ पर अधिकतर लोग अंग्रेजी को ही सामान्यतः क्यों आपस में बात-चीत का माध्यम बनाते है. जबकि हमारी सरकार कितने प्रयास हिंदी भाषा को बढ़ावा देने के लिए करती . हमारे राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र नॉएडा, ग्रेटर नॉएडा, फरीदाबाद या फिर राजधानी दिल्ली में अधिकांशतः लोगो का सवांद सूत्र स्थापित करने का माध्यम अंग्रेजी है और वो लोग आपस में अंग्रेजी में सवाद स्थापित कारके अपने आप को गौरवान्वित महसूस करते है. हिंदीभाषी व्यक्ति उनके लिए उस अचरज के समान है, जो ना जाने किस गवई माहोल से उठकर उन तक पहुँच गया हो. यह कहा कि सोच है जो अपनी ही मात्रभाषा के प्रति हेय दृष्टि अपनाती है. सभी अपनी अपनी अंग्रेजी के द्वारा एक दूसरे पर रोब झाड़ने कि कोशिश में व्यस्त होते है ऐसे में यदि कोई अपनी मात्रभाषा को सामान देते हुए उसमे अपने विचार प्रकट करना चाहे तो भी लोगो को लगता है कि आ गए हिंदी का झंडा उठाने य इनको अंग्रेजी ज्ञान है नहीं तो हिंदी में हो गए शुरू भाषण अपना लेकर. कितना बोरिंग है हूह. पर क्या ऐसी मानसिकता रखना गलत नहीं है भाई? अरे ठीक है आप अपने आपको अभिजात्य वर्ग का साबित करना चाहते हो तो क्या सिर्फ अंग्रेजी आपको अभिजात्य वर्ग का साबित करने में सक्षम है. हमारी अपनी भाषा में क्या इतना दम नहीं है ? क्यों फिर हमेशा किसी नौकरी के विज्ञापन में लिखा रहता है ..अंग्रेजी बोलने वाले को प्राथमिकता . अरे अपनी ही मात् भाषा को जब हम अपने घर में सम्मान नहीं दे सकते है ; तो अपने आप को बहार किसी देश में सम्मान मिलने के विषय में हम भला कैसे सोच सकते है. हम सबको आशाजी कि इस बात को गहनता से सोचना चाहिए और अपनी भाषा हिंदी के अधिकाधिक प्रयोग हेतु प्रयास करने चाहिए .
जय हिंद ! जय भारत
Monday, January 23, 2012
aaj ka din..neta ji ka janamdin
००.०७ ऍम.....२४/१/१२
आज का दिन ..अरे २४ जनवरी कि नहीं में २३ जनवरी कि बात कर रही हूँ.अर्थात नेता जी सुभाषचन्द्र बोसे का जन्मदिन . सुबह उठी और सोचा हम सबको शुभकामनाए देते है और जिनका जन्मदिन याद करना चाहिए उनको भूल जाते है .तो बस फसबूक पर शुभकामनाये और फोटो पोस्ट किया. फिर आज एक समारोह में शिरकत करनी थी ..पर कुछ तबियत नासाज़ थी और कुछ काम थे कई और जगह भी दूर थी, तो सोचा में नहीं जाउंगी उस समारोह में .मगर फिर जिनके यहाँ उस समारोह का आयोजन था उनका कॉल आया .कि इतनी बिजी मत बन सखी आ जा... कुछ देर के लिए ही सही....हम सब इंतज़ार कर रहे है ..ये... वो...फिर मैंने बनाया प्लान..कि सिस्टर काम देखेंगी और में इस काम को करुँगी .
सुबह ११ बजे घर से निकली और रात को ७.४५ पर घर आई और बस दौड़ती रही सारा दिन . दिन अच्छा था..सुकून था ...पर सबसे अहम था वो रास्ता देखा जिसपे शायद पहले कभी गयी थी तब वो इतना अच्छा न था. आज उसपे जाना सुखद अहसास था .
मन हुआ बस चलती रहू इस रास्ते पर.लेकिन पहले समारोह में पहुँचने कि जल्दी थी फिर इंस्टिट्यूट पहुँचने कि जल्दी. क्योकि २६ जनवरी के प्रोग्राम्स भी तेयार कराये जा रहे है वो तेरे देखनी थी.
आज जाना कि दौड़ भाग में भी कभी सुकून मिलता है वो कैसे मिलता है .
कुछ पाल आये जब लगा अरे आराम करना था मुझे आज, लेकिन फिर लगा चलो ठीक है इसी बहाने ये रास्ता देख लिया .
कूल मिला कर एक अच्छा दिन रहा आज का दिन..जो कुछ यादें कुछ बातें..कुछ जिंदगी कि फलसफे बता गया , हमें जीना सिखा गया.बंद लिफाफे में रखे खत सा दिन सारा जब गुजर गया ...दिल में बनके कुछ अहसास दिन ये पूरा उतर गया.
आज का दिन ..अरे २४ जनवरी कि नहीं में २३ जनवरी कि बात कर रही हूँ.अर्थात नेता जी सुभाषचन्द्र बोसे का जन्मदिन . सुबह उठी और सोचा हम सबको शुभकामनाए देते है और जिनका जन्मदिन याद करना चाहिए उनको भूल जाते है .तो बस फसबूक पर शुभकामनाये और फोटो पोस्ट किया. फिर आज एक समारोह में शिरकत करनी थी ..पर कुछ तबियत नासाज़ थी और कुछ काम थे कई और जगह भी दूर थी, तो सोचा में नहीं जाउंगी उस समारोह में .मगर फिर जिनके यहाँ उस समारोह का आयोजन था उनका कॉल आया .कि इतनी बिजी मत बन सखी आ जा... कुछ देर के लिए ही सही....हम सब इंतज़ार कर रहे है ..ये... वो...फिर मैंने बनाया प्लान..कि सिस्टर काम देखेंगी और में इस काम को करुँगी .
सुबह ११ बजे घर से निकली और रात को ७.४५ पर घर आई और बस दौड़ती रही सारा दिन . दिन अच्छा था..सुकून था ...पर सबसे अहम था वो रास्ता देखा जिसपे शायद पहले कभी गयी थी तब वो इतना अच्छा न था. आज उसपे जाना सुखद अहसास था .
मन हुआ बस चलती रहू इस रास्ते पर.लेकिन पहले समारोह में पहुँचने कि जल्दी थी फिर इंस्टिट्यूट पहुँचने कि जल्दी. क्योकि २६ जनवरी के प्रोग्राम्स भी तेयार कराये जा रहे है वो तेरे देखनी थी.
आज जाना कि दौड़ भाग में भी कभी सुकून मिलता है वो कैसे मिलता है .
कुछ पाल आये जब लगा अरे आराम करना था मुझे आज, लेकिन फिर लगा चलो ठीक है इसी बहाने ये रास्ता देख लिया .
कूल मिला कर एक अच्छा दिन रहा आज का दिन..जो कुछ यादें कुछ बातें..कुछ जिंदगी कि फलसफे बता गया , हमें जीना सिखा गया.बंद लिफाफे में रखे खत सा दिन सारा जब गुजर गया ...दिल में बनके कुछ अहसास दिन ये पूरा उतर गया.
Sunday, January 22, 2012
दिल ढूंढता है
आज रविवार २२/१/२०१२ है समय १.२० दिन के .
आज लगा कि जैसे कुछ सुकून के पल शायद आज मिल ही जांयेंगे . वरना कहा होता है अक्सर ऐसा जब दो पाल मिलते हो ऐसे जिनमें बस रहत कि सांसे हो.
आज कल जिंदगी में इतनी दौड हो गयी है हर पाल कोई काम इस दिमाग में दौड़ता है . कभी ये रह गया पूरा नहीं हुआ कभी अरे ये काम अभी करना शुरू करना है .
और सबकी शिकायते तुम कभी खाली नहीं रहती हमेशा कोई काम लिए उसी में उलझी रहती हो .
पर में भी क्या करूँ ? जब कोई काम नहीं होता था तब सोचती थी क्या करूँ और अब सोचती हू कैसे कुछ पल सुकून भरे दिन में चुनु .
सच है समय कभी एक सा नहीं रहता कभी हम इसके आगे कभी ये हमारे आगे .
पर अच्छा है व्यस्त रहने में भी के अलग ही मज़ा है .
कल का दिन भी ही कुछ अलग सी यादें देकर गया था..कई दिनों कि लगातार चल रही वेचैनी को कल रहत कि सांस जो मिली थी. शायद उसी कल का नतीजा ये निकला कि आज का सूरत सुकून भरी धुप खिलाता नज़र आ रहा था .मन खुश है ..क्यों अब कुछ बातें खुद भी सही सही नहीं कही जा सकती है कई बार है न???
खैर सबसे अच्छी बात बताऊ क्या है ??? मन में इस वक्त कोई हलचल नहीं है..बस ये है कि जो करना है आराम से करना है आज के दिन....क्योकि दिल ने ढूँढ ही लिए है आज कुछ सुकून भरे फुर्सत के पल.
आज लगा कि जैसे कुछ सुकून के पल शायद आज मिल ही जांयेंगे . वरना कहा होता है अक्सर ऐसा जब दो पाल मिलते हो ऐसे जिनमें बस रहत कि सांसे हो.
आज कल जिंदगी में इतनी दौड हो गयी है हर पाल कोई काम इस दिमाग में दौड़ता है . कभी ये रह गया पूरा नहीं हुआ कभी अरे ये काम अभी करना शुरू करना है .
और सबकी शिकायते तुम कभी खाली नहीं रहती हमेशा कोई काम लिए उसी में उलझी रहती हो .
पर में भी क्या करूँ ? जब कोई काम नहीं होता था तब सोचती थी क्या करूँ और अब सोचती हू कैसे कुछ पल सुकून भरे दिन में चुनु .
सच है समय कभी एक सा नहीं रहता कभी हम इसके आगे कभी ये हमारे आगे .
पर अच्छा है व्यस्त रहने में भी के अलग ही मज़ा है .
कल का दिन भी ही कुछ अलग सी यादें देकर गया था..कई दिनों कि लगातार चल रही वेचैनी को कल रहत कि सांस जो मिली थी. शायद उसी कल का नतीजा ये निकला कि आज का सूरत सुकून भरी धुप खिलाता नज़र आ रहा था .मन खुश है ..क्यों अब कुछ बातें खुद भी सही सही नहीं कही जा सकती है कई बार है न???
खैर सबसे अच्छी बात बताऊ क्या है ??? मन में इस वक्त कोई हलचल नहीं है..बस ये है कि जो करना है आराम से करना है आज के दिन....क्योकि दिल ने ढूँढ ही लिए है आज कुछ सुकून भरे फुर्सत के पल.
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