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Monday, October 25, 2010

करवा-चौथ .... Karva Chauth


‘करवा चौथ’ के व्रत से तो हर भारतीय अच्छी तरह से परिचित है! यह व्रत महिलाओं के लिए बहुत अहम होता है क्यों कि ये व्रत सुहागिन महिलाये अपने सुहाग कि रक्षा के लिए रखती है. करवा चौथ भारत में मुख्यत: उत्तर प्रदेश, पंजाब, राजस्थान और गुजरात में मनाया जाता है। इस पर्व पर विवाहित औरतें अपने पति की लम्बी उम्र के लिये पूरे दिन का व्रत रखती हैं और शाम को चांद देखकर पति के हाथ से जल पीकर व्रत समाप्त करती हैं। इस दिन भगवान शिव, पार्वती जी, गणेश जी, कार्तिकेय जी और चांद की पूजा की जाती हैं।
कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को महिलाये करवा चौथ का व्रत बड़ी जोर शोर से मानती है. इस व्रत में सुहागिन महिलाएं करवा रूपी वस्तु या कुल्हड़ अपने सास-ससुर या अन्य स्त्रियों से बदलती हैं। विवाहित महिलाएं पति की सुख-समपन्नता की कामना हेतु गणेश, शिव-पार्वती की पूजा-अर्चना करती हैं। सूर्योदय से पूर्व तड़के ‘सरघी’ खाकर सारा दिन निर्जल व्रत किया जाता है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार व्रत का फल तभी मिलता है जब यह व्रत करने वाली महिला भूलवश भी झूठ, कपट, निंदा एवँ अभिमान न करे। सुहागन महिलाओं को चाहिए कि इस दिन सुहाग-जोड़ा पहनें, शिव द्वारा पार्वती को सुनाई गई कथा पढ़े या सुनें तथा रात्रि में चाँद निकलने पर चन्द्रमा को देखकर अर्घ्य दें, उसके बाद भोजन करें।

करवा-चौथ व्रत कथा
एक समय की बात है। पांडव पुत्र अर्जुन तपस्या करने नीलगिरी पर्वत पर चले गए। किंही कारणों से वे वहीं रूक गये। उधर पांडवों पर गहन संकट आ पड़ा। शोकाकुल, चिंतित द्रौपदी ने श्रीकृष्ण का ध्यान किया। भगवान के दर्शन होने पर अपने कष्टों के निवारण हेतु उपाय पूछा। कृष्ण बोले- हे द्रौपदी! तुम्हारी चिंता एवं संकट का कारण मैं जानता हूँ, उसके लिए तुम्हें एक उपाय बताता हूँ। कार्तिक कृष्ण चतुर्थी आने वाली है, उस दिन तुम करवा चौथ का व्रत रखना। शिव गणेश एवं पार्वती की उपासना करना, सब ठीक हो जाएगा। द्रोपदी ने वैसा ही किया। उसे शीघ्र ही अपने पति के दर्शन हुए और उसकी सब चिंताएं दूर हो गईं। कृष्ण ने दौपदी को इस कथा का उल्लेख किया था:
भगवती पार्वती द्वारा पति की दीर्घायु एवं सुख-संपत्ति की कामना हेतु उत्तम विधि पूछने पर भगवान शिव ने पार्वती से ‘करवा चौथ’ का व्रत रखने के लिए जो कथा सुनाई, वह इस प्रकार है –
एक समय की बात है कि एक करवा नाम की पतिव्रता धोबिन स्त्री अपने पति के साथ तुंगभद्रा नदी के किनारे के गाँव में रहती थी। उसका पति बूढ़ा और निर्बल था। करवा का पति एक दिन नदी के किनारे कपड़े धो रहा था कि अचानक एक मगरमच्छ उसका पाँव अपने दाँतों में दबाकर उसे यमलोक की ओर ले जाने लगा। वृद्ध पति से कुछ नहीं बन पड़ा तो वह करवा...करवा.... कह के अपनी पत्नी को पुकारने लगा।
अपने पति की पुकार सुन जब करवा वहां पहुंची तो मगरमच्छ उसके पति को यमलोक पहुँचाने ही वाला था। करवा ने मगर को कच्चे धागे से बाँध दिया। मगरमच्छ को बाँधकर यमराज के यहाँ पहुँची और यमराज से अपने पति की रक्षा व मगरमच्छ को उसकी धृष्टता का दंड देने का आग्रह करने लगी- हे भगवन्! मगरमच्छ ने मेरे पति का पैर पकड़ लिया है। उस मगरमच्छ को उसके अपराध के दंड-स्वरूप आप अपने बल से नरक में भेज दें।
यमराज करवा की व्यथा सुनकर बोले- अभी मगर की आयु शेष है, अतः मैं उसे यमलोक नहीं पहुँचा सकता। इस पर करवा बोली, "अगर आप ऐसा नहीं करोगे तो मैं आप को श्राप देकर नष्ट कर दूँगी।" उसका साहस देखकर यमराज डर गए और उस पतिव्रता करवा के साथ आकर मगरमच्छ को यमपुरी भेज दिया और करवा के पति को दीर्घायु दी। यमराज करवा की पति-भक्ति से अत्यंत प्रसन्न हुए और उसे वरदान दिया कि आज से जो भी स्त्री कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को व्रत रखेगी उसके पति की मैं स्वयं रक्षा करूंगा। उसी दिन से करवा-चौथ के व्रत का प्रचलन हुआ। 
आज के परिवेश में करवा चौथ :-
आज कल पत्नियों के साथ साथ पति भी इस व्रत को रखते है..वो भी सारा दिन भूंखे रह कर अपनी पत्नियों का साथ देते है. अपनी पत्नियों की लंबी उम्र के लिए करवा चौथ का व्रत करने में सिर्फ युवा पीढ़ी ही शामिल नहीं है, बल्कि कई ऐसे प्रौढ़ पुरुष भी शामिल हैं जो लंबे समय से अपनी पत्नियों की लंबी उम्र के लिए व्रत कर रहे हैं।
इसदिन पत्निया सोलह श्रींगार करके अपने पति कि आरती करती है और चंद के दर्शन के साथ पति का दर्शन कर अपने व्रत को खोलती है. इस व्रत में मेहँदी लगाकर महिलाये अपने श्रींगार को पूरा करती है. आज कल मार्केट में मेहंदी लगाने वालो कि भरमार होने के बावजूद इस व्रत एक समय लंबी लंबी कतारे लगा कर महिलाओ को मेहंदी लगवाने के लिए इंतज़ार करना पड़ता है.
इस दिन का महिलाये बड़े उत्साह से इंतज़ार करती है . क्यों कि वो इस दिन अपने पतिके लिए सबसे सुंदर स्त्री बनने में कोई कसार बाकि नहीं रखती .पति अपनी पत्नियों को उपहार भी देते है. इस तरह ये व्रत पति और पत्नी को एक दूसरे के करीब लाता है और एक सुखद खुशहाल जीवन का रास्ता दिखाता है.


Sunday, October 24, 2010

“फाग करे अनुराग “

फाग करे अनुरागये बात तो आप सभी ने सुनी ही होगी ...
आज कल फाग का मौसम है और अनुराग मतलब प्यार ये प्यार का भी मौसम है .
तो फाग अर्थात फाल्गुन और अनुराग मतलब प्यार एक दूसरे के पूरक है .
प्यार और फाल्गुन का हमारे हिन्दुस्थान मैं प्राचीन कल से ही सम्बन्ध रहा है.

कृष्ण और राधा ..बरसाने कि होली को अमर कर गए अपने प्यार भरे होली खेलने के अंदाज़ से.कृष्ण और राधा इस फाग के महीने में रंगों में डूब कर अपने प्रेम मैं सरोबार हो कर हर तरफ प्रेम कि बारिश करते थे ..वही बारिश इस फाल्गुन में आज भी होती है.

ये महीना हर तरफ बहुत प्यार भरा और रंग बिरंगा होता है .चाहे होली के रंग हो या प्यार के रंग हो या फिर प्रकृति द्वारा बिखेरे गए मन मोहने वाले फूलो के द्वारा बिखेरे गये रंग हो . बस इस रंगीन प्यार भरे माहौल में कौन सा इंसान नाच नहीं उठेगा .

द्वापर युग में कृष्ण और राधा ने जो फाल्गुन में प्यार का रंग भरा अब भी सबके ऊपर चढा है और हम सब को ये महीना अवश्य कृष्ण और राधा के सच्चे प्यार का महत्व बताता है.

होली के मौसम में हर दिशा में फूलो के रंग बिखर जाने से प्रकृति कि सुंदरता देखते ही बनती है. इसी भाव को लेकर कुछ कहना चाहूंगी .............


निखरी प्रकृति का देखो हुआ धरा पर राज
मन ये मेरा बावरा फिर हुआ महक से आज


खिली खिली सी रंगत के संग महकी क्यारी क्यारी
स्वपन लोक सी छटा यहाँ बिखरी देखी न्यारी


रंग बिरंगे फूल खिले है छाई है हरियाली
मुंह से लगा रहे एक रस से भरी प्याली

आनन्दित तन चहका सा मन झूम रहा है ऐसे
मीठा एक हवा का झोंका चूम रहा है जैसे


इतना प्यारा दृश्य जो सारा आँखों में बस जाए
मध्यम -2 मन से खुशबू महकी -2 आये


सपना एक सुहाना अपने मन में आज बसाऊ
रंग बिरंगे पंख लगा कर फूलो को छू आऊ


आप सभी पाठकों को मेरी तरफ से होली कि हार्दिक शुभकामनाये

Monday, October 4, 2010

माँ-बाप




आज अचानक एक विज्ञापन देखा टीवी पर...एक बेटी घर से बाहर  काम से जाती है , माँ की आँखों में बेटी की जुदाई के कारन आंसू आ जाते है और वो उन आंसूओं को रुमाल से पोछती है. और जाते जाते बेटी माँ के हाथ से वो रुमाल लेकर जाती है .

फिर विज्ञापन के आगे का भाग दिखाया जाता है  और वो लड़की एक प्रतियोगिता में विजेता बन जाती  है  क्यों कि उसके दिमाग में अपनी माँ के वो आंसू समाये थे..और जिस रूमाल में  माँ के आंसू समाये थे वो  उसको माँ के आंसूओं कि याद दिला रहा था..फिर वो जीत जाती है और हवा में लहरा  देती है वो माँ के हाथ से लिया गया माँ के आंसूओ से भीगा वो रुमाल.
कुल मिला कर पूरा विज्ञापन ज्यादा से ज्यादा लगभग १ मिनट का होगा  ..पर मन में कही गहरे उतर गया वो एक विज्ञापन.
ऐसा क्या था उसमें ? बहुत से ऐसे ही विज्ञापन आते रहते हैं , है न ?

उस विज्ञापन में मुझे तो एक खास बात नज़र आयी..एक अहसास , एक अपनापन , एक जरिया मंजिल तक जाने का...और सबसे ज्यादा जो चीज़ खास थी,  वो था माँ बेटी का प्यार और माँ के लिए बेटी के अहसास ..जिसके कारन माँ के आंसू बेटी के लिए एक प्रेरणा बन गए और मंजिल तक जाने का रास्ता वही से उसे दिख गया..उसने अपनी मंजिल पाने के लिए जान लगा दी. है न  ये  एक खूबसूरत अहसास भरा विज्ञापन.

आज जब रिश्तों के मायने बदल रहे है ..बच्चे माँ बाप से दूर रहने  को मजबूर है या शादी के बाद एक अलग घर बना कर बस जाते है, ऐसा चलन अब आम बन गया है .
ऐसे में ये विज्ञापन एक सुखद अहसास भर देता है मन में.
जब माँ बाप को छोड़ कर बेटी अपने घर चली जाती है और बेटा बहू के साथ अपना घर बसा लेता है तब माँ बाप कैसे अकेले में अपने दिन बिताते है और कितने आंसू बहते है ये गिन पाना बहुत मुश्किल है .पर काश अगर हर बच्चा अपने माता- पिता के दर्द का ख्याल करे ,तो जब तक बहुत जरूरी न हो वो माता पिता से दूर  नहीं रह सकता.
ये बात हर बच्चे को समझनी चाहिए कि माँ-बाप बच्चे के सिर पर  छत है ..ये छत जब तक सिर पर रहे तब तक कोई धूप हमें नहीं  जला सकती है..बल्कि एक शीतलता भरी छाया जरुर हमारे ऊपर   बनी रहती है.

मैं तो ये ही चाहती हूँ हर बेटा या बेटी अपने माँ-बाप कि अहमियत समझे और जब तक हो सके उनका साथ दे उनके साथ रहे. फिर जो जगह जगह ओल्ड एज होम खुल रहे है उनकी जरुरत नहीं होगी हमारे समाज में. जिन्होंने हमें बनाया होता है क्या हम उनको अनके आखिरी वक्त में अपना साथ भी नहीं सकते है?  फिर क्यों कोई माँ-बाप एक बच्चे को पाले या उस पर अपनी जिंदगी लुटाए भला??

हो सकता है बहुत से लोग इस बात के लिए भी बहुत से तर्क  देने लग जाये..पर कुछ बातों के लिए तर्क ना ही दिए जाए तो अच्छा है.
बस हर माँ-बाप को अंतिम वक्त तक अपने बच्चो का साथ मिले और प्यार  मिले तब देखो दुनिया कितनी हसीं होगी.

बस प्यार के अलावा इनको कोई चाहत नहीं होती
माँ-बाप से बड़ी दुनिया में  कोई दौलत नहीं होती  
                    .        .११.२९ पम , ४/१०/१०

 

Monday, September 27, 2010

एक सच



आज इन्टरनेट करने के लिए जब बैठी तो नेट पर कुछ लोगों के ब्लोग्स पढ़ने लगी. मैंने देखा लोग साहित्य में भी गुट बाजी करते है. हर ब्लोग पर कुछ ही चेहरे टिप्पणियाँ करते नजर आ रहे थे. जैसे किसी और को पढ़ने का या कुछ कहने का उनके पास वक्त ही नहीं है.
मैंने बहुत से ऐसे लोगो को पढ़ा है जो बहुत अच्छा लिखते है, मगर उनको कोई अपना कीमती वक्त देकर टिप्पिणियाँ नहीं करता. क्यों की न तो वो गुट बाजी में यकीन रखते है और न ही वो किसी को कहते है कि आप आकार हमारे पोस्ट पर टिप्पणियाँ करो.
क्या आज बस लोग वाह वाही लूटने के लिए कुछ लिखते है या फिर लिखने के लिए लिखते है? ये प्रश्न मेरे मन में अक्सर ही  घूमता रहता है.

आज कल लोग बस नाम के लिए जान पहचान वालों को पढते है या फिर अपनी साहित्य रूचि के लिए कुछ ऐसा पढाना चाहते है जो वाकई में ऐसा लगे कि हां कुछ लिखा है नया सा. या फिर ओरिजनली लिखा गया है , कहीं से चुराया हुआ कोई भाव नहीं है...पर अब जिसे देखो वो गुलजार होना चाहता है या जावेद अख्तर होना चाहता है ..पर ये दो ऐसे नाम है जिन्होंने बरसो मशक्कत करके अपना नाम इस बुलंदी पर पहुँचाया है. तब क्या इन सब लोगो को, जो अपना नाम लेखकों कि श्रेणी में रखते है. कुछ ऐसा नहीं लिखना चाहिए या पढना चाहिए जो वाकई में मन को सुकून देने वाला हो, जिसे पढकर लगे कि हां लिखने वाले ने क्या लिख दिया है.
पर आज बस यश कि चाहत है सबको चाहे लिखने के नाम पर वो कुछ भी बकवास करे . पर एक सच्चे लेखक को या साहित्य प्रेमी को तो इंतज़ार होता है एक ऐसी रचना को जो आपके मन और आत्मा को अंदर तक भीगा सके. और सच्चाई के साथ फिर अपनी राय हर पढाने वाला दे, तभी सबका लेखन सफल है.

Monday, September 13, 2010

गणेश उत्सव कि सभी को हार्दिक शुभकामनाएं.

ओम गणेशाय नम:
आज कल गणेश उत्सव बड़े धूमधाम से मनाया जा रहा है.गणेश उत्सव महाराष्ट्र में विशेष तौर पर मनाया जाता है.पर यह हिंदू धर्म को मानने वाले लोग हर जगह पर मनाते है. गणेश चतुर्थी को विनायक चतुर्थी भी कहा जाता है. गणेश जी का स्थान हिंदू समाज में किसी भी शुभकार्य हेतु प्रथम पूज्य है. गणेश जी का शरीर हाथी और आदमी दोनों को मिला कर माना जाता है.गणेश जी कि संपूर्ण संरचना हैमें बहुत कुछ बताती है या कहे सीख देती है. आइये हम क्या क्या सीख सकते है किस भाग से यह जाने.
बड़ा सिर :- बड़ा सोचना सिखाता है.
कान :- गणेश जी के बड़े-बड़े कान हमें जयादा सुनने कि सीख देते है.
छोटी आंखे:- गणेश जी छोटी आँखे अपने लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करना सिखाती है.
गणेश जी के हाथ का फरसा या कुल्हाड़ी :- सभी प्रकार एक मोह बंधन को काटने कि हमें सीख देती है.
दूसरे हाथ का फूल :- लक्ष्य के नजदीक रखने कि प्रेरणा देता है .
छोटा मुंह :- कम बोलने कि प्रेरणा देता है .
एक दन्त :- अच्छाई को नजदीक और बुराई को दूर करने कि सीख देता है .
दुआयें :- अपनी शक्ति से मार्ग के संकटो को दूर रखने का महत्व बताती है.
सूड :- उच्च झमता एवं ग्रहण करने कि झमता
बड़ा पेट :- आराम से कोई भी अच्छी या बुरी चीज़ जिंदगी में पचाने कि सीख देता है .
लड्डू या मोदक :- साधना का फल
चूहा :- अपनी चाहतों पर अंकुश लगाने कि सीख देताहै..ये सिखाता है कि चाहतो को अपने अधीन रखना चाहिए ना कि उनके अधीन रहना चाहिए इंसान को.
प्रसाद :- पूरा संसार आपके द्वार


इस प्रकार गणेश जी का हर अंग हमें बहुत कुछ सिखाता है..और बेहतर जिंदगी जीने के काबिल बनाता है.


इस साल गणेश उत्सव ११ सितम्बर से २२ सितम्बर तक मनाया जायेगा..
गणेश जी आप सभी के सब दुखो को दूर करे.
गणेश उत्सव कि सभी को हार्दिक शुभकामनाएं.



Monday, September 6, 2010

हर बच्ची अमूल्य है


चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी

रात को अपने पड़ोस में रहने वाले एक परिवार में मैं गयी, उनके यहाँ उनके बेटे के परिवार में नए सदस्य का आगमन हुआ था..अर्थात बेटी का जन्म हुआ था .
मैं एक पास ही रहने वाली भाभी जी के साथ उनके घर गयी. वहाँ पहुँच कर कुछ देर हम बाहर ड्राइंग रूम में बैठ गए...आंटी जी ने वोही हमें बिठा दिया पर मैंने मन में तो नन्ही सी कोमल सी गुडिया को देखने कि पड़ी थी. इसलिए चाहती थी जल्दी से जल्दी वाहन से हमें अंदर उसके पास तक ले जाया जाये.मगर सब हमसे बात करने लगे..मुझसे पूछा  जाने लगा मम्मी क्यों नहीं आयी, पापा क्यों नहीं आये , मैंने जल्दी से उत्तर दे दिया इस उम्मीद के साथ कि अब अंदर हम जायेंगे. मगर फिर वोही सिलसिला जारी हो गया भाभी जी के साथ ..उनसे भी पूछा जाने लगा भैया के बारे में कि वो क्यों नही आये?
मुझे मन ही मन ये फिक्र हो रही थी कि कब में उस नन्ही सी कलि को देख सकुंगी ..या आज देखने को मिलेगा भी या नहीं?
वो इसलिए क्यों कि उनके यहाँ उस बच्चे कि छठी थी ..मतलब उसको जन्म  लिए हुए ६ दिन पूरे हुए थे. अब ख्यालो का सिलसिला दिल-ओ जहाँ में चल रहा  था तभी मेरे पास जिनके घर हम गए थे, उनकी बेटी का आगमन हुआ, पहले मैंने बढ़ायी डी बुआ बनने  की  और हमने  फिर  तपाक से कह ही डाला..कि बच्ची कहा है??
उससे कहा कि देखनी है???
हमें कहा और क्या...
उससे कहा अंदर है आओ
मैं पीछे हो ली, मेरे साथ वो भाभी जी और उनकी दो बेटियाँ  भी अंदर चल दी.
जब हम अंदर पहुंचे तो छोटी सी बच्ची सोयी हुई थी..माँ के साथ..एक दम नाजुक नाजुक ..गोरी-गोरी  प्यारी सी.
बहुत खुशी हुई उसको दकेह कर और तसल्ली भी मिली..उसको कुछ गिफ्ट्स दिए मैंने और बस उसको देखने बैठ गयी.
सारे लोग कितना खुश थे मैंने देखा ..वो भैया जिनकी वो बेटी थी उनकी पत्नी अंकल आंटी और बाकि सारे उनके परिजन बहुत खुश थे.

कुछ देर उस उस नन्ही सी गुडिया के साथ बैठके फिर हुआ कि चलो खाना खा लो..पर मेरा मन भी कहा सुन रहा  था , मुझे तो बस वही  उसके साथ रहने का मन हो रहा था.
पर सब उठके जाने लगे तो हम भी सबके साथ हो लिए..रात के १० बज ही गए थे तो मजबूरी भी थी .घर भी आना था.
फिर खाना खाया और सबसे कुछ देर मिली बातें हुई. उसके बाद घर आयी.
बस एक संतोष था कि लड़किया हमेशा अनचाही नहीं होती..उनके जन्म पर भी घर वालो को खुशी हासिल होती है.और यही खुशी मेरे लिए बहुत बड़ी थी.
बस सभी होने वाले बच्चे कि देखभाल करे प्यार से न कि बेटे या बेटी में फर्क  करे. तभी तो स्वस्थ समाज का निर्माण हो सकता है.
हर बच्ची अमूल्य है ये बात हम सबको समझनी ही होगी. कल का भविष्य है ये बेटियाँ .इनकी आज देखभाल करना आप सभी का फ़र्ज़ है .

Monday, August 30, 2010

janmastami ki hardik shubhkamnaye

श्री कृष्ण जन्माष्टमी भद्र पदा के आठवें  दिन (अगस्त –सितम्बर मास ) में मनायी जाती है. इस दिन सारे संसारे में बहुत धूम धाम से श्री कृष्ण के जन्म का उत्सव मनाया जाता है .लोग पूरे दिन भर व्रत रखते है और  रात को १२ बजे के बाद अपना- अपना व्रत खोलते है. मंदिरों में भगवान श्री   कृष्ण के भजनों से  कीर्तन किया जाता है, उनकी पूजा अर्चना की जाती है .
श्री कृष्ण की जन्म स्थली मथुरा में इस दिन विशेष पूजा अर्चना की जाती है..वहाँ  ये उत्सव बहुत धूम धाम से मनाया जाता है.पूरे देश भर के भक्तजन मथुरा  पहुँच कर उनके जन्मोत्सव के समारोह में सम्मिलित होते है.इस दिन भक्तजनों का उत्साह देखने लायक होता है .हर भक्त बस कृष्ण के रंग में रंग जाता है और कृष्ण के भजन ही गाता है .

भगवान कृष्ण की महिमा को जानने के लिए भागवत  और पंचतंत्र को पढ़ा जा सकता है.उनकी लीलाओ और उनके द्वारा किये गए समस्त कार्यों  के कारण विश्व में आठवें  अवतार भगवान कृष्ण को पूजा जाता है.  कुरुझेत्र के मैदान में कृष्ण ने अर्जुन को जो उपदेश दिया वो भगवत गीता के रूप में उपलब्ध है और यही गीता भारत के भक्ति स्कूल में भक्ति के ज्ञान के लिए मुख्य रूप से रखी जाती है. इसकी महत्वता आज विश्व के लोग भी जान  गए है इसलिए आज पूरे संसार में कृष्ण के अनुयाइयो की कमी नहीं है..हर देश में कृष्ण भक्ति धारा के अनुगामी लोग हमें मिल जायेंगे. उन सबका मानना  है कि जो कृष्ण के रंग में रंग जाता है उसको कोई दुःख नहीं होता है..वो स्वस्थ और संपन्न रहता है.राधा और कृष्ण के कमल पद मेडीटेशन के प्रमुख तत्त्व माने गए है.कहते है प्रेम हर मर्ज़ की दवा है और राधा और कृष्ण का प्रगाढ प्रेम अपने भक्तो या अनुयायियों को सब दुखो से
दूर कर प्रेम तत्त्व को समझाता है और सुखी बनाता है.
भगवान कृष्ण ज्ञान में अद्वितीय , भावो के स्वामी , महान योद्धा थे.श्री कृष्ण जैसी जिंदगी किसी ने नहीं पाई थी ..वो हर तरह से महान थे. कृष्ण की बासुरी की धुन गोपियों और सबका मन मोह लेती थी और सभी प्राणियों के  दुखो को उनकी बासुरी की धुन कम कर देती थी.
वृन्दावन और गोकुल की गलियों में कृष्ण गाये चराते थे और इसी समय ये तरह तरह की लीलाये रचाते थे. बचपन से ही इन्होने कई दुष्ट राक्षसों का वध किया और उनके क्रूर क्र्त्यो से प्राणियों को मुक्ति दिलाई. कृष्ण जी  ने उद्धव और अर्जुन को योग, भक्ति और वेदान्त के सत्य से अवगत कराया.

कृष्ण जन्माष्टमी को भारत में महिलाये अपने दरवाजे पर रंगोली सजा के भगवान कृष्ण का स्वागत करती है. तरह तरह के मिष्ठान बना कर कृष्ण जन्म   को उत्साह के साथ मानती है. दही माखन जो कृष्ण का प्रिय था उससे भगवान  का भोग लगाती है .इस दिन जगह जगह भागवत का पाठ किया जाता है.
इस तरह इस दिन का हमारे हिंदू समाज में विशेष महत्व है.

भगवान कृष्ण और राधा रानी आपके दुःख को दूर कर खुशिया भरे आप सभी के जीवन में यही मेरी प्रार्थना है.

Monday, August 23, 2010

राखी ..बंधन है प्यार का, विश्वास का..



राखी ..बंधन है प्यार का, विश्वास का..

मतलब ...राखी बहन इस विश्वास के साथ भाई की कलाई पर बांधती है की भाई उसकी रक्षा के लिए इस बंधन में बंधा उसके साथ सदा रहेगा.भाई भी बहन के विश्वास को पूरा कर सके इसके लिए पूरी कोशिश करता है.हर भाई बहन का प्यार इस बंधन से और मजबूत बनता है .
भारत देश में ही ऐसा होता है की हर रिश्ते में प्यार और विश्वास का भरपूर साथ होता है. मगर देखने में आ रहा है की कुछ समय से भारत में भी पाश्चात्य सभ्यता के अनुसार ही सब लोग अपने तक सिमटने लगे है. अब भाई और बहन के लिए ये राखी का त्यौहार महज एक परम्परा निभाने का प्रतीक है. खाना पूर्ति के लिए ही सही ये त्यौहार मना लिया जाता है. पर क्या बिना प्यार और अपनेपन के इस त्यौहार को बनाना सार्थक है ? मेरे हिसाब से तो कतई नहीं.
हर रिश्ता फलता फूलता है सिर्फ और सिर्फ प्यार के आधार पर.बिना इस आधार   के रिश्ते का कोई अस्तित्व ही नहीं बचता . ये त्यौहार जो हम पुराने ज़माने से बनाते आ रहे है इसका आधार बस प्यार है उअर इसलिए इन परम्पराओ को प्यार के साथ निभाने का हम सभी को संकल्प करना चाहिए.क्यों की भारत में ही ऐसा होता है प्यार और विश्वास के साथ सब रिश्ते आपस में मजबूती से गुंथे है . और हर साल ये त्यौहार जब भी आता है भाई बहन के प्यार को नयी मजबूती देके जाता है. हर लम्हा इस दिन यही बताता है की भाई और बहन की मायने बहुत है एक दूसरे के लिए. और ये बात सिद्दत से जो महसूस करता है वो वह इंसान होता है जिसकी भाई या फिर बहन नहीं होती है.

आइये अपने इस प्यारे से त्यौहार पर हम सबही अपने भाई या बहन को अपने प्यार का अहसास प्यार एक साथ कराये और अपने बंधन को एक मजबूती प्रदान करे.ताकि बचपन से संग रहा और पला बढ़ा ये रिश्ता सदा हसता  रहे एवं फलता रहे .

आप सभी को रक्षा बंधन की हार्दिक शुभकामनाये.

Sunday, July 25, 2010

सुसाइड /आत्महत्या


सुसाइड /आत्महत्या ..आज जिधर देखो यही सुनायी दे रहा है की बच्चे ने माँ बाप द्वारा ड़ॉट दिए जाने पर सुसाइड कर ली, या फिर गर्ल फ्रेंड ने प्यार में धोखा दिया, तो आत्म हत्या कर ली, या फिर लड़की ने प्यार का निवेदन ठुकराया तो आत्मा हत्या कर ली. टीवी पर मनपसंद कार्यक्रम नहीं देखने दिया तो इस बात पे आत्मा हत्या कर ली....या परीक्षा में फेल हो गए तो खुद कि जान ले ली. क्या एक परीक्षा में फेल होना या एक लड़की द्वारा ठुकराया जाना या फिर एक टीवी प्रोग्राम अपनी पसंद का ना देख पाना आत्म हत्या करने के रास्ते पर ले जाये ऐसा होना चाहिए????

क्या आज जिंदगी इतनी सस्ती हो गयी है, कि एक जरा सी बात पर कोई भी आत्म हत्या करने पे उतारू हो जाता है.
पेपर में एक खबर पढ़ी:- “ गर्ल फ्रेंड के पिता ने किसी बात पे थप्पड़ मार दिया तो लड़के ने आत्महत्या कर ली. इस बात पर सोचने को मजबूर हो गयी मैं.
आज कल के बच्चो को माँ बाप क्या सिखा रहे है? जरा जरा सी बात किसी बच्चे से सहन नहीं होती. और एक जरा सी बात जान देने के लिए उकसा देती है इन आज कल के बच्चो को.
लेकिन बच्चे ही नहीं बड़े भी इसीप्रकार के कृत्य करने पर उतारू है. दो तीन दिन हुए टीवी पर समाचार देखते हुए पता लगा कि एक एस ड़ी ऍम ने आत्मा हत्या कर ली.
मैंने पहले इस बात पे इतना गौर नहीं किया..मगर जब आज एक परिचित ने मुझे फोन किया और बताया कि वो मेरी दोस्त के पिता थे और उनका पार्थिव शरीर आज लाया जा रहा है पोस्टमार्टम के बाद, तब बहुत दुःख हुआ. पहले एक पल को दुःख हुआ था, मगर अब दूसरी दोस्तों को भी बताया कि ऐसा हो गया है.
मतलब आज कल इन घटनाओ को सुनना और पढना इतना आम हो गया है कि हमें ज्यादा फर्क नहीं पड़ता है ..क्यों कि हम सब अपनी जिंदगी में व्यस्त होते है. अगर कोई फर्क पड़ता है तो वो उस वक्त जब हमें उस इंसान के बारे में ये पता लगता है कि वो हमारी पहचान का था. तब दुःख होता है कुछ दिन और फिर सब वही पहले जैसा हो जाता है. हम फिर से अपनी अपनी जिंदगी में व्यस्त हो जाते है.

क्यों आज कल कोई किसी कि कोई बात सुनना नहीं चाहता है..जरा सा घर में माँ बाप कुछ कह दे या कोई कुछ कह दे सब जान देने को आतुर हो जाते हैं. क्या हमारा आने वाला कल इतना कमजोर हो गया है जो जरा भी सहनशीलता नहीं रखता है.फिर हम एक मजबूत कल कि उम्मीद कैसे कर ले इन कमजोर दिल के कल के कर्णधारों से.
क्या हमारा या हर माँ बाप का फ़र्ज़ नहीं बनता है कि इनको सहन शील बनाये ..और किसी भी बात पे तुरन्त मरने का ना सोचे ये सिखाए उस बात का मुकाबला हिम्मत से करे ये समझाए.
कल का भविष्य कमजोर कमजोर नहीं मजबूत हाथो में सौपने का फ़र्ज़ हर माँ बाप का है ..इसलिए उनको ही पहल करनी होगी अपने बच्चे में आत्मविश्वाश जगाने की और आत्मा हत्या जैसा रास्ता कायर अपनाते है ये सिखाने का काम भी माँ बाप ही अच्छी तरह कर सकते है. बच्चे का मानसिक तौर पर मजबूत बनाये न कि कमजोर मानसिकता का इंसान .इसके लिए बच्चे को हर परिस्थिति से निपटना सिखाना होगा ही,
तभी एक मजबूत कल कि परिकल्पना साकार हो सकेगी.
टाइम..१०.३० pm......२०/७/१०

Friday, July 9, 2010

औरत..अस्तित्व का प्रश्न


सुबह सुबह अखबार पढ़ने के लिए आज जब बैठी, पन्ना दर पन्ना एक निगाह डालते हुए अंदर के पन्ने तक पहुंची. अचानक एक खबर पर जा कर निगाह मेरी अटक गयी , जो की लिंग परिवर्तन से सम्बंधित थी. ऐसा नहीं था की आज से पहले लिंग परिवर्तन की कोई घटना पेपर मे न पढ़ी हो, मगर इस बार जो कारण पेपर में मैंने पढ़ा वो मेरे लिए बहुत चौकाने वाला था.खबर कुछ इस प्रकार थी कि –“ घर वालों के दवाब में आकर शादी न करनी पड़े, इसलिए एक महिला ने अपना लिंग परिवर्तित करा लिया.उस महिला के अनुसार इस पुरुष प्रधान देश में कोई भी महिला अपनी मर्ज़ी से बिना शादी किये नहीं रह सकती है. अगर वो शादी न भी करना चाहे तो उसे घर वालों के दवाब में आकर सिर्फ इसलिए शादी करनी पड़ती है क्यों कि घर वालों को समाज का डर सताता रहता है, कि उनकी बहन या बेटी अगर शादी नहीं करेगी तो समाज क्या कहेगा या समाज में तरह तरह कि बातें न फैले. इसलिए वो लड़की के मर्ज़ी के बगैर जबरदस्ती समाज के दर से उसकी शादी करा देते है. अतः उसने परिजनों को बिना सूचित किये अपनी मर्ज़ी के मुताबिक जिंदगी जीने के लिए अपना लिंग परिवर्तित कराया ताकि वो बिना किसी पुरुष के सहारे आराम से अपनी जिंदगी जी सके.

इस घटना से मैं ये सोचने पर मजबूर हो गयी की ये घटना समाज का मार्गदर्शन कर दिशा मे समाज को लेकर जायेगी? कहीं इस प्रकार की इक्छा रखने वाली लड़किया इस घटना से प्रेरित हो अपना लिंग परिवर्तन करा खुद को इस पुरुष प्रधान समाज का हिस्सा न बना ले. मैं इस घटना की समर्थक तो नहीं मगर इस घटना को लेकर संजीदा जरुर हूँ. उस लड़की की क्या मनोदशा रही होगी जिसने घर वालों के दवाब में आकर शादी न करनी पडे सिर्फ इसलिए अपनी पहचान ही बदलवाना उचित समझा. उसकी मनोदशा को मे समझने का एक छोटा सा प्रयास मैं कर ही रही थी की शाम होते होते एक और आम सी हो चुकी मगर महत्वपूर्ण घटना ने मुझे फिर सोचने पर मजबूर कर दिया .

हुआ ऐसा की शाम को मेरी एक परिचित से मेरी मुलाकात हुई , बोली दीदी मे कल छुट्टी पर रहूंगी.

मैंने कारण जानना चाहा पूछा : क्या हुआ ?

अपने पेट की (प्रेग्नेंट थी वो ) तरफ इशारा कर बोली :- इस चक्कर में

मैंने कहा :- सब ठीक तो है ??

वो बोली :- जरा चेक करना है

मैं बोलो :- वो तो आप यहाँ भी करा सकती हो ..

तो उसने कहा :- हां , यहाँ करा तो सकती हूँ, मगर मुझे कुछ और चेक करना है

मैंने फिर कहा :- लड़का है या लड़की ये पता करना है क्या??

उसने हाँ में सिर हिला दिया .

मैं एक दम अचंभित हो गयी .

मैंने उससे कहा:- क्या जरुरत है ऐसा कराने की ? और ऐसे भी ऐसा करना अपराध है.

तो वह बोली :- एक लड़की तो है ही मेरी और मेरी पड़ोसन ने उस जगह टेस्ट कराया था. लड़की थी.

मैं बोली:- थी मतलब अब नहीं है ?

वह बोली :- नहीं अब नहीं है.

मैंने फिर उसे समझाने के मकसद से कहा :- अगर एक औरत ही लड़कियों को जनम नहीं लेने देगी तो किसी और को या पुरुषों को क्या दोष देना.

इन दोनो ही घटनाओ से इस ओर इशारा होता है की हमारे समाज में औरतों की दशा किस कदर बदतर है. औरत ही जब सिर्फ पुरुष के वर्चस्व को मान दे रही है तो फिर उसी इस दशा के लिए हम किसी और पर दोषारोपण कैसे कर सकते है. सरकार या गैर सरकारी संगठन कितना भी कन्या भ्रूण हत्या को रोकने का प्रयास कर लें , मगर चोरी छिपे ये घृणित कार्य आज भी समाज में हो रहा है और इसे करने वाली और करने वाली दोनो ही महिलाये है. जब तक एक-एक औरत अपना महत्व नहीं समझेगी तब तक कोई पुरुष भला उसे क्या महत्व देगा.

मैंने उस महिला को अपने स्तर से समझाया , मगर उसकी समझ में क्या और कितना आया ये तो वह ही जाने. मगर इन दोनो ही घटनाओ ने मुझे अवश्य दुखी कर दिया; की जहाँ एक ओर लड़किया अपने ही अस्तित्व को बरक़रार रखने के लिए खुद को एक अहम मुकाम तक लाना चाह रही है वहाँ महिलाये ही अपने अस्तित्व के साथ खिलवाड भी कर रही है.

फोटो साभार :- लिसा फित्तिपल्दी

Saturday, June 12, 2010

बारिश की फुहारे

















रिमझिम
मेघा पानी ला
प्यासी धारा है प्यास बुझा

महीनो से तपती हुई धरती को जैसे प्यास बुझाने का अवसर मिला इस बारिश से . मौसम की इस बारिशकी फुहार ने जनजीवन को बहुत राहत दी है .
गोरी को तो जैसे सावन ने पिया मिलन की छूट दे दी हो , तभी तो उसका मन मयूर गा उठा है ...


रिमझिम रिमझिम रिमझिम रिमझिम
पड़े फुहारे जब रिमझिम रिमझिम,
ऐसी बरखा बरसाए ये सावन
भीगे भीगे हों मेरे तन मन,
ठंडी फुहारे जब हमें भिगाए
मन भर के साजन तेरे संग,
मन का मयूरा पि पि बोले
मेरा प्यासा सा मन डोले
रिमझिम बारिश मे ओ साजन
आ संग भीगे हम तुम.


बारिश की फुहारे हर छोटे बड़े के मन को प्रफुल्लित कर जाती है. गर्मी जब अपनी चरम सीमा पर हो तोबारिश का होना एक बहुत सुखद अनुभूति दे जाता है .
बच्चो को गर्मी से बचने के लिए माँ बाप बहार नहीं जाने देते है ..तब ये बारिश उनके खेलने का बहानालेकर आती है और बाल मन को बहुत भाती है.

बस बारिश खुशियो का बहाना सी लगने लगती है तब..जब हर मन को ये खुश कर जाती है .बस ये बदलऐसे ही पानी भर कर लाये और इस प्यासी धरा और पशु पक्षियों की प्यास बुझाए .

Saturday, May 8, 2010

माँ


माँ..

एक ऐसा शब्द जिसमे बहुत कुछ समाया है -प्यार , त्याग , अपनापन, समर्पण और मिठास
माँ कहने वाले और सुनने वाले दोनों के मन मे एक मीठा अहसास भर देता है.
आज उस माँ को नमन जिसने हमें जन्म दिया और प्यार से पाल के बड़ा किया

उस माँ के नाम मेरी एक प्यार भरी भेंट

माँ
जब तू
पास नहीं
मेरे होती
हर और
अँधेरा लगता,
दिल हर
आवाज़ पे
धडकता

माँ
जब तू
होती है
मेरे पास
तब है
चैन की
हर एक
सांस

माँ
मैं हूँ
बालक नादान
पर करूँ
मे दिल से
तेरा सम्मान

माँ
तू जननी
तू ही
आशा
जो करे है
दूर निराशा

माँ
मेरी तो
हर शय
है तू
तू जिस्म
तू ही लहू

माँ
तेरा वंदन
करती हू
अभिनन्दन
करती हूँ
तू पूज्य है
सदा सदा से।

माँ
कहती हूँ
यही खुदा से
जब भी जीवन
मुझे देना,
मुझे मेरी
माँ ही देना.

माँ
तू ममता
की है छाया
मेरा सौभाग्य
है यह माँ
जो मैंने
तुझको पाया
हां माँ
जो मैंने
तुझको पाया