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Monday, October 25, 2010

करवा-चौथ .... Karva Chauth


‘करवा चौथ’ के व्रत से तो हर भारतीय अच्छी तरह से परिचित है! यह व्रत महिलाओं के लिए बहुत अहम होता है क्यों कि ये व्रत सुहागिन महिलाये अपने सुहाग कि रक्षा के लिए रखती है. करवा चौथ भारत में मुख्यत: उत्तर प्रदेश, पंजाब, राजस्थान और गुजरात में मनाया जाता है। इस पर्व पर विवाहित औरतें अपने पति की लम्बी उम्र के लिये पूरे दिन का व्रत रखती हैं और शाम को चांद देखकर पति के हाथ से जल पीकर व्रत समाप्त करती हैं। इस दिन भगवान शिव, पार्वती जी, गणेश जी, कार्तिकेय जी और चांद की पूजा की जाती हैं।
कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को महिलाये करवा चौथ का व्रत बड़ी जोर शोर से मानती है. इस व्रत में सुहागिन महिलाएं करवा रूपी वस्तु या कुल्हड़ अपने सास-ससुर या अन्य स्त्रियों से बदलती हैं। विवाहित महिलाएं पति की सुख-समपन्नता की कामना हेतु गणेश, शिव-पार्वती की पूजा-अर्चना करती हैं। सूर्योदय से पूर्व तड़के ‘सरघी’ खाकर सारा दिन निर्जल व्रत किया जाता है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार व्रत का फल तभी मिलता है जब यह व्रत करने वाली महिला भूलवश भी झूठ, कपट, निंदा एवँ अभिमान न करे। सुहागन महिलाओं को चाहिए कि इस दिन सुहाग-जोड़ा पहनें, शिव द्वारा पार्वती को सुनाई गई कथा पढ़े या सुनें तथा रात्रि में चाँद निकलने पर चन्द्रमा को देखकर अर्घ्य दें, उसके बाद भोजन करें।

करवा-चौथ व्रत कथा
एक समय की बात है। पांडव पुत्र अर्जुन तपस्या करने नीलगिरी पर्वत पर चले गए। किंही कारणों से वे वहीं रूक गये। उधर पांडवों पर गहन संकट आ पड़ा। शोकाकुल, चिंतित द्रौपदी ने श्रीकृष्ण का ध्यान किया। भगवान के दर्शन होने पर अपने कष्टों के निवारण हेतु उपाय पूछा। कृष्ण बोले- हे द्रौपदी! तुम्हारी चिंता एवं संकट का कारण मैं जानता हूँ, उसके लिए तुम्हें एक उपाय बताता हूँ। कार्तिक कृष्ण चतुर्थी आने वाली है, उस दिन तुम करवा चौथ का व्रत रखना। शिव गणेश एवं पार्वती की उपासना करना, सब ठीक हो जाएगा। द्रोपदी ने वैसा ही किया। उसे शीघ्र ही अपने पति के दर्शन हुए और उसकी सब चिंताएं दूर हो गईं। कृष्ण ने दौपदी को इस कथा का उल्लेख किया था:
भगवती पार्वती द्वारा पति की दीर्घायु एवं सुख-संपत्ति की कामना हेतु उत्तम विधि पूछने पर भगवान शिव ने पार्वती से ‘करवा चौथ’ का व्रत रखने के लिए जो कथा सुनाई, वह इस प्रकार है –
एक समय की बात है कि एक करवा नाम की पतिव्रता धोबिन स्त्री अपने पति के साथ तुंगभद्रा नदी के किनारे के गाँव में रहती थी। उसका पति बूढ़ा और निर्बल था। करवा का पति एक दिन नदी के किनारे कपड़े धो रहा था कि अचानक एक मगरमच्छ उसका पाँव अपने दाँतों में दबाकर उसे यमलोक की ओर ले जाने लगा। वृद्ध पति से कुछ नहीं बन पड़ा तो वह करवा...करवा.... कह के अपनी पत्नी को पुकारने लगा।
अपने पति की पुकार सुन जब करवा वहां पहुंची तो मगरमच्छ उसके पति को यमलोक पहुँचाने ही वाला था। करवा ने मगर को कच्चे धागे से बाँध दिया। मगरमच्छ को बाँधकर यमराज के यहाँ पहुँची और यमराज से अपने पति की रक्षा व मगरमच्छ को उसकी धृष्टता का दंड देने का आग्रह करने लगी- हे भगवन्! मगरमच्छ ने मेरे पति का पैर पकड़ लिया है। उस मगरमच्छ को उसके अपराध के दंड-स्वरूप आप अपने बल से नरक में भेज दें।
यमराज करवा की व्यथा सुनकर बोले- अभी मगर की आयु शेष है, अतः मैं उसे यमलोक नहीं पहुँचा सकता। इस पर करवा बोली, "अगर आप ऐसा नहीं करोगे तो मैं आप को श्राप देकर नष्ट कर दूँगी।" उसका साहस देखकर यमराज डर गए और उस पतिव्रता करवा के साथ आकर मगरमच्छ को यमपुरी भेज दिया और करवा के पति को दीर्घायु दी। यमराज करवा की पति-भक्ति से अत्यंत प्रसन्न हुए और उसे वरदान दिया कि आज से जो भी स्त्री कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को व्रत रखेगी उसके पति की मैं स्वयं रक्षा करूंगा। उसी दिन से करवा-चौथ के व्रत का प्रचलन हुआ। 
आज के परिवेश में करवा चौथ :-
आज कल पत्नियों के साथ साथ पति भी इस व्रत को रखते है..वो भी सारा दिन भूंखे रह कर अपनी पत्नियों का साथ देते है. अपनी पत्नियों की लंबी उम्र के लिए करवा चौथ का व्रत करने में सिर्फ युवा पीढ़ी ही शामिल नहीं है, बल्कि कई ऐसे प्रौढ़ पुरुष भी शामिल हैं जो लंबे समय से अपनी पत्नियों की लंबी उम्र के लिए व्रत कर रहे हैं।
इसदिन पत्निया सोलह श्रींगार करके अपने पति कि आरती करती है और चंद के दर्शन के साथ पति का दर्शन कर अपने व्रत को खोलती है. इस व्रत में मेहँदी लगाकर महिलाये अपने श्रींगार को पूरा करती है. आज कल मार्केट में मेहंदी लगाने वालो कि भरमार होने के बावजूद इस व्रत एक समय लंबी लंबी कतारे लगा कर महिलाओ को मेहंदी लगवाने के लिए इंतज़ार करना पड़ता है.
इस दिन का महिलाये बड़े उत्साह से इंतज़ार करती है . क्यों कि वो इस दिन अपने पतिके लिए सबसे सुंदर स्त्री बनने में कोई कसार बाकि नहीं रखती .पति अपनी पत्नियों को उपहार भी देते है. इस तरह ये व्रत पति और पत्नी को एक दूसरे के करीब लाता है और एक सुखद खुशहाल जीवन का रास्ता दिखाता है.


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