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Monday, April 8, 2013

ध्वस्त होते रिश्ते


क्या हुआ है  आज कल लोगो कि मानसिकता को ?
..क्यों इनती कुत्सित मानसिकता वाले लोग इस समाज में मुह उठाये घूम रहे है ? आप सोच रहे होंगे कि में ये लिख क्या रही हूँ ..तो शायद आप भी येही कहेंगे जो मैंने कहा यहाँ कि सच में समाज दिग्भ्रमित होकर चल रहा है..अपने मूल्यों को खोकर कोई समाज कब तक जिन्दा रह सकता है..उसकी मौत निश्चित है .
होने को तों आये दिन ऐसा कुछ न कुछ समाज में घटित हों ही रहा है ..पर कल और आज फिर कुछ घटनाये ऐसी पढ़ी अखबार में कि मन बैचैन हों उठा. क्यों समाज में सारे रिश्ते नाते ध्वस्त होकर सिर्फ़ एक नाता बचा रह प् रहा है वो है स्त्री और पुरुष का. कल के अखबार में बहु और ससुर के रिश्ते को  कलंकित करती खबर पढ़ी , एक बाप बेटी के रिश्ते के ध्वस्त होते प्रतिमान कि खबर पढ़ी  , दोस्ती के रिश्ते को बदनाम करने वाले दोस्त कि खबर पढ़ी ..और आज फिर एक बाप ने ही अपने दोस्त के साथ मिलकर अपनी ही बेटी को शर्मशार किया ये खबर जब पढ़ी तों दिमाग ने जैसे कम ही करना बंद कर दिया. में सोचने लगी उस लड़की कि हालत के विषय में जिसके अपने पिता ने अपने दोस्त के साथ मिल कर उसके साथ दुष्कर्म किया और उसको धमकाया भी . एक लड़की के लिए उसका पिता या भाई उसके रक्षक होते है जिनके साये में वो सुकून से बढ़ सकेगी ऐसा उसका और घर वालो का मनना  होता है. पर जब वो रक्षा करने वाला उसकी अस्मत कि धज्जिया उदा देता है तब उसका अस्तित्व एक लड़की के रूप में उसको ही धिक्कारता है ..कि क्यों उसने एक लड़की का जन्म लिया ? पर क्या ये उसके लड़की होने का कसूर् है? क्या उसके अस्तिव का कोई महत्व ही नहीं है ? क्यों एक रिश्ता सिर्फ़ पुरुष मए तब्दील हों जाता है ..ये मेरी समझ से परे है ..और मेरी समझ में सिर्फ़ एक बात आती है कि जब भी कोई रिश्ते को दरकिनार कर किसी भी रिश्ते को कलंकित करे उसको सज़ा ए  मौत के सिवाय कोई सज़ा न दी जाये. ...वरना हम अपनी गरिमा के साथ साथ इस पूरे समाज को नष्ट  होते देखने  को मजबूर होंगे. 

1 comment:

Anonymous said...

सार्थक और प्रेरक आलेख, इस चिंतनीय और निंदनीय प्रवृति जो असाध्य रोग बनती जा रही है पर लगाम लगाना अति आवश्यक है
"वरना हम अपनी गरिमा के साथ साथ इस पूरे समाज को नष्ट होते देखने को मजबूर होंगे"