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Saturday, September 27, 2014

रेत

रेत उडकर जब भी बदन से आके लिपटती है ..तो अनेको नाम भी उड़कर बदन पर गिर चिपक जाते है और थोड़ी देर में झड जाते है



ये धुली सी रेत कह रही है....कबका धुल गया है वो एक तेरा नाम , जो इस साहिल पे लिखा था कभी ...@ 

सखी सिंह 

ye dhuli si ret kah rahi ..kab ka dhul gya hai wo ek tera naam jo is sahil pe likha tha kabhi . 

Sakhi Singh

फोटो -मृणाल शेखर